कौशलेंद्र प्रपन्न
कई बार सोचता हूं कि हम अपने जीवन में कितनी यात्राएं करते हैं। कहां कहां जाते हैं, किन किन से मिलते हैं। कभी पहाड़ की यात्रा करते हैं तो कभी समंदर की। कभी किसी कछार की। कहां नहीं जाते हम?
यात्राओं से होता क्या है? क्या मिलता है इन यात्राओं से ? और कुछ मिले न मिले हमारी समझ और अनुभव तो व्यापक होते ही हैं। तरह तरह के भाषा-भाषी हमें मिलते हैं। कहीं खान-पान में विविधता दिखाई देती है। कहीं का पहनावा हमें अपनी ओर लुभाता है। कहीं की प्रकृति हमें आकर्षित करती है।
हमारे आस-पास ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने अपने गांव की दहलीज तक नहीं लांघी है। उनके लिए वहीं गांव की चौहद्दी दुनिया है। उनके लिए दुनिया वहीं पोखर,पीपल के पेड़ और हरी भरी ख्ेती तक महदूद है।
वहीं लोग तो रातों रात सात समंदर पार कर पूरी संस्कृति को लांघ आते हैं। रात बिती और नई जमीन और नए लोगों के बीच खुद को पाते हैं। अपने तजर्बे साझा करते हैं।
रूदयाड किपलिंग लिखित उपन्यास ऑन द टै्रक ऑफ किम पढ़ने लायक है। इसमे बनारस से अमृतसर तक की रेल यात्रा का दिलचस्प वर्णन मिलता है।
वहीं साहित्य में यात्रा संस्मरण भी खूब लिखे गए हैं। जिन्हें पढ़ने से देश दुनिया की समझ विकसित होती है।
मेरे ख़्याल से जितनी अपनी चादर हो उसके अनुसार हमें यात्राएं कर लेनी चाहिए। क्योंकि जिंदगी में पैसे कमाने के काम से भी ज्यादा और भी जरूरी काम हुआ करते हैं।
1 comment:
जो अनुभव घूमकर प्राप्त हो सकते हैं, वे अमूल्य हैं !
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