कौशलेंद्र प्रपन्न
पिछले दिनों तीन लोगों से बात हुई। इसमें कोई नई बात क्या है? आप सभी की भी किसी न किसी से बात होती ही रही होगी। लेकिन इस बातचीत में कुछ तो ख़ास था। कुछ तो ऐसे ताप रहे होंगे कि आप सभी से साझा करने को मचल उठा। बात छोटी है पर है बड़ी गंभीर।
उन्होंने कहा, पढ़ाना उनके लिए कोई दिक्कत की बात नहीं। पढ़ाते ही रहे हैं। प्रशासनिक काम भी देखते रहे हैं। लेकिन पिछले दो एक सालों में प्रशासनिक काम पढ़ने-पढ़ाने में इस कदर लद गए हैं कि पढ़ाने की चाह को दबाना पड़ रहा है। उन्हें दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग में काम करते हुए तकरीबन बीस साल हो चुके हैं। उन्होंने विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के साथ मिल कर काम किया है। करिकूलम, टेक्स्टबुक आदि भी बनाया है। अब रोज आरटीइ के जवाब दे देकर और फाइल के पेट भरने में लगे हैं।
दूसरी बातचीत सहायक प्राध्यापक से हुई। उनके पास भी बीस पचीस सालों का तर्जबा है। अच्छा लिखती-पढ़ती हैं। इनका भी अनुभव किताब, पाठ्यपुस्तक निर्माण, करिकूलम आदि में महारत हासिल है। लेकिन कहने लगीं जॉब बचाने के लिए बेकार से काम करने पड़ रहे हैं। गैर शैक्षिक कामों में झोके जाने की शिकायत सिर्फ उनकी ही नहीं है बल्कि स्कूली शिक्षक भी ऐसी ही शिकायत करते हैं। इनकी कौन सुनता है। प्रशासन और सत्ता ऐसी शिकायतों पर ध्यान नहीं देती। उन्हें रिपोर्ट और फाइल पूरी चाहिए। वीआरएस लेकर स्वतंत्र रूप से काम करने की इच्छा दोनों ने ही अपनी बातचीत में व्यक्त किया।
कहना तो नहीं चाहिए कि ये कितने सौभाग्यशाली हैं कि उनके पास नौकरी है। नौकरी है तो आर्थिक चिंता से दूर भी हैं। ज़रा उनकी सोचें जिन्हें ऑटोमेशन के बरक्स अपनी नौकरी गवानी पड़ रही है। एक निजी आइटी कंपनी ने अपने वीसी और अन्य उच्च पदों पर काम करने वालों को विकल्प दिया कि नौ माह की सैलरी लेकर कंपनी को अलविदा कर दें। कुछ वक्त लगा लेकिन अब ख़बर आई है कि सब ने यह ऑफर स्वीकार कंपनी से बाहर हो गए।
इन दिनों आइटी सेक्टर पर ऐसी घटनाएं आम हो चुकी हैं। एचसीएल, सन फार्मा, टेक महिन्द्रा आदि ने अपने यहां स्टॉफ कम करने शुरू कर चुके हैं। बाजार में नौकरियां सिमटी जा रही हैं। ख़ुद की नौकरी बचाए रखने के लिए आइटी सेक्टर के लोग विभिन्न संस्थानों से खर्चीले कोर्स कर रहे हैं जो ऑटोमेशन से लड़ने के स्कील दे सकें। एक कोर्स की कीमत तीन से चार लाख है।
ज़रा सोचिए शिक्षण कर्म में ऐसी कोई ऑटोमेशन की तलवार नहीं लटकी हुई है। न किसी टीचर की नौकरी अचानक रातों रात जा सकती है। वहीं दूसरी ओर बाजार में शाम तक आपने काम किया और सुबह गेट पर ही आपने लैपटॉप, आइकार्ड आदि मांग ली जाती है और कहा जाता है कि एचआर से मिल लें। वह सुबह और शाम कैसी होती होगी।
लेकिन हमारे टीचर को अपनी स्कील को मांजने और खंघालने की आवश्यकता है। ताकि बच्चां को आने वाली चुनौतियों से सामने करने में मदद मिल सके।
4 comments:
वक्त के साथ हर आयाम बदल रहा है...जॉब चाहे जिस क्षेत्र में हो प्रतिस्पर्धा की दौड़ तो है ही अच्छा भी तो है बदलते समय के साथ खुद के लिये भी नया अपडेशन..😊
Automation ni ha sir...par fir BHI government sector ke vyakti vrs le rahe Han
सही कहा आपने
अध्यापकों को अपनी स्किल सुधारने की आवश्यकता है
Teaching is a creative profession unlike automated jobs of engineering..I agree that teachers need to update their skills and knowledge on regular basis...But what happens in our system in the name of updating the
skills of teachers is another story..
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