Monday, February 27, 2017

रात बिरात उठ जाते


उन्हें रात बिरात उठने की आदत जो थी,
उठ जाते
लोटा पानी नहीं
रात में भी उनका हाथ
माइक ढूंढ़ा करता।
भोर भिनसार उठ कर कहीं नहीं जाते
बस माइक चाहिए होता था उन्हें
शुरू हो जाते।
आदत से
कौन परेशान नहीं था?
उन्हें देखते
हो हो करने वाले भी खड़े ही हो जाते
उन्हें देखकर उनका पाव भर खून बढ़ जाता।
सुबह सबेरे
नहा धोकर
बबरी झार कर
खड़े हो जाते
कुछ तो ऐसे भी थे
जिन्हें माइक के बिना
खाना पचता न था।
सो अपने घर में भी
मंच लगा रखा था
जब भी उबकाई सी आती
माइक पकड़ लिया करते थे।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...