लेखक जब अपनी आनुभविक भूमि से बाहर खड़े होकर लिखता है तो संभव है शब्दों की तिलस्मी जाले तो बुन सकता है किन्तु पाठकों को ज्यादा समय तक बांध कर नहीं रख सकता। पाठकों तक पहुंचने के लिए पाठकीय परिवेश, उसकी भाषायीजगत को रचनाओं में बोना पड़ता है ताकि पाठक रचना से गहरे जुड़ सके। यहां कई बार लेखक चूक जाता है। वह जो लिखना चाहता है, जिस भावभूमि से आता है उसकी सृजना करता है। अपनी पसंदगी नापसंदगी को तवज्जो देने वाला लेखक कहीं न कहीं पाठकीय सत्ता और रूच्यालोक को दरकिनार करता है। तात्कालिक प्रसद्धि और क्षणिक प्रचार के लोभ का संवरण करना है तो ज़रा कठिन लेकिन इसका लाभ हमें बाद में मिलता है। अक्सर लेखक तात्कालिक दो कॉलम की प्रसिद्ध पाने की ललक में अपनी रचना प्रक्रिया और रचना प्रतिबद्धता के साथ न्याय नहीं कर पाता।
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Monday, February 20, 2017
रचना प्रतिबद्धता के साथ न्याय
लेखक जब अपनी आनुभविक भूमि से बाहर खड़े होकर लिखता है तो संभव है शब्दों की तिलस्मी जाले तो बुन सकता है किन्तु पाठकों को ज्यादा समय तक बांध कर नहीं रख सकता। पाठकों तक पहुंचने के लिए पाठकीय परिवेश, उसकी भाषायीजगत को रचनाओं में बोना पड़ता है ताकि पाठक रचना से गहरे जुड़ सके। यहां कई बार लेखक चूक जाता है। वह जो लिखना चाहता है, जिस भावभूमि से आता है उसकी सृजना करता है। अपनी पसंदगी नापसंदगी को तवज्जो देने वाला लेखक कहीं न कहीं पाठकीय सत्ता और रूच्यालोक को दरकिनार करता है। तात्कालिक प्रसद्धि और क्षणिक प्रचार के लोभ का संवरण करना है तो ज़रा कठिन लेकिन इसका लाभ हमें बाद में मिलता है। अक्सर लेखक तात्कालिक दो कॉलम की प्रसिद्ध पाने की ललक में अपनी रचना प्रक्रिया और रचना प्रतिबद्धता के साथ न्याय नहीं कर पाता।
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