कौशलेंद्र प्रपन्न
शहर में ऐसी घटना पहली बार घट रही थी। चारों दिशाओं से तरह तरह की चिडियों की झुंड़ आ चुकी थीं। उसमें गिलहरी, बाज़, गिद्ध, सोनजूही, गरवैया,कौआ सब आज साथ थे। किसी ने भी उड़ान भरने से मना नहीं किया।
सोनजूही ने कहा ‘‘ आज तक, आज तक ऐसा नहीं हुआ।’’
‘‘इन लोगों ने पेड़ काटे हमने चूं तक नहीं किया।’’ हमारा बैठने का ठिकाना काट डाला।’’
गिद्ध और बाज़ चुपचाप सब सुन रहे थे। बीच में गिलहरी बोल पड़ी,
‘‘ इनकी चले तो हमें शहर से निकाल बाहर करें।’’
‘‘ख़ुद तो छोटे छोटे कोठरों में सिफ्ट हो गए।’’
‘‘हमारे लिए छोड़ा ही क्या है?’’
‘‘बिजली के खंभों पर बैठना भी महफूज़ न रहा अब तो। वहां भी कंटीले तार बिछा दिए इन इनसानों ने।’’
बाज़ कुछ बोलने को अपनी चोंच बाहर निकाली और कहा,
‘‘शुक्र है, तुम तो अभी भी शहरों में उड़ान भर पाते हो। बच्चे तुम्हें देख कर खुश हो लेते हैं। और गिलहरी तुम्हें क्या चिंता है पार्क में बच्चे, बड़े कुछ न कुछ खाने को डाल देते हैं।’’ ‘‘हम तो अब दूर की कौड़ी हो गए। एक दो हमारे परिवार के बचे हैं जिन्हें इनसानों को दिखाने के लिए चिड़ियाघरों में कैद कर रखा है।’’
‘‘लेकिन आज समय आ गया है अपनी भी आवाज़ बुलंद करने की। आख़िर ये इनसान हमें क्या समझते हैं?’’
बहुत ही बौखलाहट में कौआ बोले जा रहा था। उसके परिवार के चचा मेटो्र की चपेट में आ गए थे। शहर भर में धुआं ही धुआं। दो हाथ की दूरी तक कुछ भी लौका नहीं रहा था।
‘‘तार के ऊपर बैठे थे कि तभी मेटो्र दंदनाती हुई गुज़री और चचा उड नहीं पाए बेचारे।’’
हमसब पहले दो मिनट का मौन रखते हैं और फिर अपना आंदोलन शुरू करेंगे।
देखते ही देखते कॉव कॉव करते हुए भारी संख्या में कौए आ गए। किसी ने इत्तला कर दी कि आज ट्रैक पर हजारों की संख्या में चिड़ियों ने धावा बोल दिया है। यात्री परेशान थे। दफ्तर के लिए देरी हो रही थी। सब के सब चिल्लाने लगे। चीखने लगे। उधर चिड़ियों ने ठांन रखी थी जब तब ऊंचे अधिकारी बात करने नहीं आएंगे कोई भी यहां से उड़ान नहीं भरेगा।
इस ट्रैक पर प्रवासी प़क्षियों की झुड़ भी उतर चुकी थी। आख़िर उन्हीं की प्रजाति के उड़ान भरने, जीने मरने का सवाल जो था।
वैसे एक प्रवासी कलगी वाली चिड़िया ने कहा,
‘‘ ठीक है कि हम साल में कुछ दिन यहां गुजारते हैं, लेकिन हैं तो हम ग्लोबल सिटिजन ही। ये लोग प्रवासी सम्मेलन करते हैं। उन्हें सम्मानित करते हैं। वहीं दूसरी ओर हमारे उ़ड़ान भरने, बैठने तक की मौलिक अधिकारों का तार तार करते हैं। ऐसा अब नहीं चलेगा।’’
लंबी पूंछ को हिलाती, लहराती हुई दूसरी चिड़िया ने कहा,
‘‘ हम इस मामले को यूएन और अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में उठाएंगे।’’
सब ने हां हां, हम एक हैं। खुले गगन के हम वासी एक ईंट से ईंट बजा के रहेंगे।