रिश्ते कब कैसे बदल जाते हैं इसका प्रमाण गाहे बगाहे मिलते रहते हैं लेकिन दिल जो है मानने को तैयार ही नहीं होता। पिछले दिनों रेडियो पर इक कार्यक्रम सुन रहा था वहां दो की बीच के प्यार का परीक्षा लिया जा रहा था। क्या वो मुझे ही प्यार करता है या किसी और को। प्रस्तोता ने पुचा मैं आपको १००० रूपये दूंगा क्या आप उनके साथ डेट पर जाना चाहेगी या पैसा ले कर घर पर रहना चाहेगीं। तो तकरीबन गिर्ल्स का कहना था पैसे दे दो अगर यह आप्शन है तो। कोइन जाना चाहता है। प्रस्तोता ने फिर कहा तो क्या वाकई पैसे के लिए उनके साथ डेट पर जाना नहीं चाहेगीं। तो साफ़ ज़वाब था हाँ इसमें क्या गलत है।
इसतरह के कार्यक्रम को सुन कर आज के युवा के विचार सुन कर कुछ देर के लिए ताजुब होता है लेकिन होना नहइ चाहिए। मूल्य नैताकता या इसी तरह के शब्द आज अपने अर्थ खो चुके हैं जो भी यैसे शब्दों को ले कर बैठे हैं उनको निराशा ही हाथ आने हैं और कुछ नहीं। रिश्ते के मायने बदल चुके हैं इस बात को कुबूल करना ही होगा। जो भी इस उम्मीद में बैठे हैं उनको भी इस हकीकत को स्वीकार करना ही होगा कि आज संवेदना से नहीं बलिक पैसे से रिश्ते चलते हैं...
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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2 comments:
दिल को मानना ही पड़ेगा ही रिश्ते वक्त बेवक्त बदल जाते हैं।
समय बदल गया है. व्यवसायिकता प्राथमिक हो गई है.
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