क्या पेड़ कभी बयां कर सकता है ? हाँ कर सकते हैं अपने आखों के सामने जो भी घटना होती है उसे अपनी आखों में जब्ज कर लेते हैं। ज़रा सुने-
मैं तो पेड़ हूँ कहीं जा आ नहीं सकता है। जहाँ जन्म लेता हूँ वहीँ ताउम्र जमा रहता हूँ। हाँ यह अलग बात है कोई मुझे कलम के द्वारा दूसरी जगह खड़ा कर देते हैं। तब मेरी शाखाएं व्याप्त हो जाती हैंवर्ना मैं तो इक ही जगह खड़ा रहता हूँ। बर्ष के हर मौसम में मैं चुप खड़ा रहता हूँ। धुप हो या बारिश, ठंढ हो या पतझड़ मौन सहता रहता हूँ। यही तो मेरी नियति है। मेरे सामने लोग बड़े होते हैं। धुल में लिप्त कर बड़े हुए बच्चे बड़े हो कर शहर चले जाते हैं। दुबारा लौट कर नहीं आते। मैंने अपनी आखों से गावों को बसते और उजड़ते देखा है। पर हमारे बयाँ पर कोई कैसे विश्वास कर सकता है। हर कोई यही कहेगा कि पेड़ भी कोई बयाँ दे सकता है। मगर यही सच है मैं बयाँ देता हूँ जी हाँ मैंने देखा है महाभरत, रामायण और यहाँ तक कि कारगिल भी मेरे सामने ही घटा है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Monday, June 7, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...
-
प्राथमिक स्तर पर जिन चुनौतियों से शिक्षक दो चार होते हैं वे न केवल भाषायी छटाओं, बरतने और व्याकरणिक कोटियों की होती हैं बल्कि भाषा को ब...
-
कादंबनी के अक्टूबर 2014 के अंक में समीक्षा पढ़ सकते हैं कौशलेंद्र प्रपन्न ‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘कविता की संवेदना’, ‘आलोचना का स्व...
-
bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
No comments:
Post a Comment