भोपाल के जेल से निकला नागेन्द्र जी हिंदी साहित्य में इक डॉ नागेन्द्र हुए हैं जिन्हें सभी हिंदी व् साहित्य के रसिक जानते हैं। लेकिन इस नागेन्द्र को जेल की सलाखों ने लिखने पर मजबूर कर दिया। जेल जाना कुछ के लिए रोज के काम हुवा करते होंगे लेकिन इस नागेन्द्र के लिए पुरे १० साल के सजा हो गई। वो भी उस अपराध के लिए जो उसने किया ही नहीं था। उस पर आरोप यह लगागाया कि इस ने अपनी पत्नी की हत्या की है। और २००१ में जेल जाना पड़ा। लेकिन इस नागेन्द्र के पास इक संवेदनशील मन था जिसने उसे कलम चलाने पर विवश किया। जेल में रहते हुवे उसने तें विषये में ऍम ये किया हिंदी , अंग्रेजी और समज्शाष्ट्र के साथ ही म्यूजिक और कंप्यूटर में भी ट्रेनिंग ली। जेल से निकल कर वो अपने किताब छपवाना का मन बना रहा है। अभी उसके पास कम से कम १०० कविता और लघुकथा , उपन्यास की पंदुलीपी तैयार है।
पढने की ललक को कोई न तो ताले में और न जेल की सलाखों के पीछे दाल कर रोक
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
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