ज़िन्दगी यूँ ही चलेगी , चुकी हम किसी से समझोता नहीं करते। जबकि ज़िन्दगी में तो सुख दुःख तो पहिया के समान चलते रहते है। लेकिन हम तो सुख का दामन हाथ से निकलने नहीं देते। हमारी कोशिश तो यही होती है कि हम बेहतर ज़िन्दगी जीयें। लेकिन हम जैसा चाहते हैं वैसा हर समय कहाँ होता है। कोई जिसे आप या हम बेहद करीब मानते हैं जब उससे रुखसत की बरी आती है तब दिल बैठना शुरू होजाता है ।
छह कर भी उससे दूर नहीं जा पाते। लाख मनन कर लेते हैं कि यह गलत है लेकिन दिमाग हमेशा से ही बस अपने बारे में ही सोचता है। यैसे में प्यार, नफरत, दूरिय, सब के सब रह रह कर चहलकदमी कर ने लगते हैं। यैसे में कोई खुद के अपने प्रिय से को अलग कर सकता है। अलग होने या करने के लिए मनन, चिंतन जैसे भावुक पलों को बिलकुल भूलना पड़ता है। कठोर हो कर सोचना होत्ता है।
मन क्या करे उसे जब इन्द्रिय अपनी और खेचती हैं तो वह रुक नहीं पाटा। यही वो पल होता है जब इन्सान खुद को धुखा देता है। खुद के साथ झूठ बोलता है। जब की मनन हकीकत जनता है। बस दिल इसे शिकार नहीं कर पाटा।
जब की यह सच है कि इन्सान को अपनी जमीन देखनी चाहिए।
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