बेगुन हुवा ब्रिंजल, आखिर जनता और जैव संबर्धित उत्पाद पर चल रहे विवाद का अंत हो गया। जय राम रमेश ने आख़िरकार जैव आधरित बैगन के उत्पाद को लेकर सरकार के कदम का खुलासा कर दिया। पहले तो रमेश १० फरबरी को येलन करने वाले थे लेकिन इक दिन पहले ९ तारीख को ही घोषणा कर दी कि फ़िलहाल भारत में जैव आधरित उत्पाद के लिए प्रयाप्त समय नहीं है।
इस एरिया में अभी जाँच पड़ताल करना बाकि है। पूरी तरह से सुरक्षित है इस बात की पुस्ती जब तक नहीं हो जाती इस मौसदे को सरकार आगे नहीं बध्यागी।
यानि बैगुन का भरता निकल गया। हो भी क्यों न बिना पूरी तहकीकात के बेगुन की जैविक खेती का मन बनालेने से तो बात नहीं बन जाती। इसीलिए इस परियोजना को मुह की खानी पड़ी। जानकारों का मानना है कि इस पारकर कि खेती से न केवल इन्सान पर बल्कि जीव जनत्वों पर भी बुरा असर पद सकता है। अमरीका में कपास की जैविक खेती के दौरान पाया गया कि जिन जनत्वों ने उस पौद्ध को खाया था उनकी या तो मौत हो गई या फिर उनकी किडनी में खराबी पायी गई। यैसे में बिना पर्याप्त जाच पड़ताल के आनन् फानन में सरकार इस मौसदे को अमली जामा पहनना चाह रही थी।
मगर देश की जनता और खुद देश के ११ राज्यों ने जैविक बैगुन की खेती के खिलाफ आवाज बुलंद कि की हम अपने यहाँ जैविक खेती नहीं होने देंगे।
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