कुम्भ में स्नान को लेकर जिस तरह से भीड़ हरिद्वार में जमा हुई है उसे देख कर लगता है समस्त देश गंगा के तट पर जमा है। देश की आर्थिक, सामाजिक या फिर राजनीतिक हालत जो भी हो हमें स्नान करने से वास्ता है। वहां की जनता परेशां होती है हो। स्कूल, कॉलेज बंद रहें तो हों। मगर स्नान में किसी भी किस्म की बदिन्ताज़मी बर्दास्त नहीं होगी।
कुम्भ में अखाड़ों में पहले मैं पहले मैं की लड़ाई में किसे कदर आम जन को भय से गुजरना होता है उसका अंदाजा लगा सकते हैं। मगर न तो सरकार और न ही अखाड़ों को इससे कोई खास लेना होता है और न ही स्नान करने वालों को।
साधू समाज को समाज के प्रति भी कोई जिम्माधारी होती है है तो उसका पालन किया जाना चाहिय। लेकिन साधू समाज का वास्ता स्नान से ज़यादा होता है। काश वो लोग समाज की सर्स्कृति व् धर्म या फिर संस्कार के लिए स्चूलों में नैतिक मूल्यों का प्रसार करें तो कम से कम आज के बच्चों में कुछ मूल्य, संस्कार या फिर भारतीय धरोहरों के बारे में लगाओ पैदा करने में रूचि जागेगी। लेकिन इस काम के लिए मेहनत करना होगा। साधू समाज को धार्मिक कर्मकांडों से फुरशत ही कहाँ है जो इस काम में समय दे सकें।
No comments:
Post a Comment