न वो दीप की रौशनी रही,
न वो अँधेरा ही,
चारो और,
रौशनी ही रोध्नी,
आखें धुन्धती,
चाँद पल की खातिर,
सुकून....
दीप जो,
रोशन कर दे,
अंतर्मन
छाए अंधरे और लोभ की घटा टॉप को....
चलो ले कर आयें,
येसी रोशन दीप,
जो चीर दे,
अन्धतम की छाती....
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Friday, October 16, 2009
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
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