आज लगा सभी से शायद आखरी मुलाकात हो रही है। फिर कितने दिनों के बाद लोगों से मिलना होगा? इक लम्बी चुप्पी के बाद जब उनलोगों से मिलना होगा तो क्या वही ऊष्मा, वही , मुस्कान दिखेगा?
लेकिन शायद आज दोस्तों से मिल कर लौटना येसा लगा की जैसे पता नही कब फिर मुलाकात होगी।
निर्मल वर्मा की इक बात याद आती है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Thursday, September 25, 2008
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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