Tuesday, April 23, 2019

अतीत में अटक जाना नहीं



कौशलेंद्र प्रपन्न
विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता है ‘‘मैं उन सब से मिलने जाउंगा’’। इस कविता में क्या खूब अंदाज में विनोद जी लिखते हैं कि नदी मेरे घर नहीं आ सकती मैं उससे वहीं मिलने जाउंगा। जो लोग मेरे घर नहीं आते मैं उनके उन्हीं के घर मिलने जाउंगा। जो जो नहीं मिल पाते उनसे मिलने जाउंगा। एक जरूरी काम की तरह मिलूंगा। आदि आदि। एक हम हैं जो साथ है, जिसके साथ रहते हैंं उन्हीं से नहीं मिल पाते। उन्हीं से नज़रे चुराते हैं। उन्हीं से रास्ते मिल जाने पर बचकर निकलने की कोशिश करते हैं। रिश्ते को किस मोड़ पर हम छोड़ देते हैं जहां से शायद हम लौटना ही नहीं चाहते। कहां तो कवि, शायर, लेखक आदि तमाम कोशिश करते पाए जाते हैं कि रिश्ते को कैसे बचाया जाए। कैसे बीच के फासले को कम करने की कोशिश की जाए ताकि रिश्ते के बीच की गरमाहट बची रहे।
आज की तल्ख़ हक़ीकत यही है कि नए नए ऑन लाइन और सोशल प्लेटफॉम पर दोस्त और फॉलोवर की संख्या तो बढ़ाते हैं। लेकिन जो पास है। जिससे हम कभी भी कहीं भी लड़ सकते हैं। अपनी रंजीशें साझा कर सकते हैं। अपने दुख और सुख का साथी बना सकते हैं। इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। पास बैठे हुए को पुचकारने की बजाए अन्यान्य मंचों पर आकाशीय दोस्तों पर समय लगाया करते हैं। हालांकि वह भी गलत और नाजायज नहीं है। दोस्ती तो दोस्ती होती है। हां जरूरी यह है कि क्या हम इन रिश्तों को निभाने संजीदा हैं। हमारे आस-पास इतने लोग हैं जिनमें कुछ को दोस्त मान और स्वीकार सकते हैं उन्हें भी हम कई बार बेहतर तरीके से पेश नहीं आते। वजह यही है कि पास होते हुए भी हमारी पहुंच और एरिया ऑफ कंसर्न से बाहर होते हैं। हम एक ऐसे भीड़ में तब्दील हो चुके हैं जहां कंधे से कंधा टकराते तो हैं लेकिन उनसे बात करने, मिलने जुलने का वक़्त हमारे पास नहीं है। हम नजरें चुरा कर आगे बढ़ जाते हैं या फिर उन्हें नोटिस भी नहीं करते।
दूसरे शब्दों में कहें तो हम उन्हीं से वास्ता रखना अपनी प्राथमिकता रखते हैं जिनसे कहीं न कहीं, कभी न कभी कोई ज़रूरत पड़ सकती है। इस अनुमान और येजना निर्माण में यह बात स्पष्ट होती है कि उन्हीं से रिश्ता रखना है या रखना चाहिए जिनसे भविष्य में कोई काम बनता हो आदि आदि। यही वो प्रस्थान बिंदु है जहां से रिश्तों के समीकरण तय होते हैं। किनसे किस स्तर का वास्ता रखना है या रखना भी है या नहीं। सिर्फ दोस्ती शायद आज की तारीख़ में न के बराबर सी रह गई है।
रिश्तों में गरमाहट व ऊष्मा तभी तक बची रहती है जब तक कोई हमारी आम जिंदगी में शामिल हो। व कह लें जिन्हें रोज दिन अपनी बातें साझा किया करते हैं। वो लोग कभी भूलाए नहीं भूलते जिनसे हमारा साबका रोज का होता है। व्यक्ति कटता भी तभी चला जाता है जब वह हमारी रोजमर्रे की जिंदगी से अलग हो जाता है। वैसे भी व्यक्ति कब तक पुरानी यादों और स्मृतियों के साथ जिंदा रह सकता है। बच्चन साहब ने क्या खूब लिखा है, ‘‘ जो बीत गई सो बात गई माना वह बेहद प्यार था...’’ हमारे बीच से कई सारे लोग हैं जो बहुत प्यारे थे जब थे। अब वो नहीं है। कई बार भौतिक तौर पर तो कई बार संवेदना के स्तर पर दूर जा चुके हैं। लेकिन भूपेंद्र सिंह का गया एक गाना भी याद कर सकते हैं ‘‘करोगे याद तो हर बात याद आएगी, गुजरते वक़्त की हर बात याद आएगी’’। जो वर्तमान को जीने वाले होते हैं वो अतीतजीवी को पिछड़ा और अतीत में रहने वाले मान बैठते हैं। कहते हैं जो बीत गई उसपर रोना क्यों? जो पास नहीं उसके लिए पछाड़ें मार कर जीना क्यों? आगे की राह आसान हो और पुराने यादें परेशान न करें इसके लिए जरूरी है कि अतीत की स्मृतियों की पोटली बांध कर दूर किसी संदूक में बंद कर दिया जाए।
हमारा पूरा का पूरा इतिहास, साहित्य, दर्शन आदि अतीत की स्मृतियों पर ही आधारित हैं। यदि अतीत को निकाल दें तो इतिहास पूरा खाली हो जाएगा। इतिहास अधूरा होगा तो हमारी संस्कृति, सभ्यता की काफी सारी थाती हमसे दूर चली जाएगी। हम किसी भी सूरत में सिर्फ और सिर्फ वर्तमान में जिंदा नहीं रह सकते। हमें कई बार अतीत का सहारा और संबल लेना ही पड़ता है। यह भी दीगर बात है कि हम अतीत की यात्रा क्यों करते हैं? क्यों हमें अतीत की कहानियों, बातों, यादों और घटनाओं में आनंद आया करता है? शायद इसलिए कि हमें अपने अतीत और स्मृतियों से एक ताकत और रोशनी भी मिलती है। हम पुरानी घटनाओं और इतिहास से एक सीख लेते हैं कि जब वह पूरी घटना गुजर गई तो यह तो बहुत छोटी है। इससे भी निपटा जा सकता है। मैंनेजमेंट के छात्रों को केस स्टडी के द्वारा किसी कंपनी के उतार-चढ़ाव के बारे में पढ़ाया जाता है कि फलां कंपनी कभी अपने प्रोडक्शन और सफलता की ऊंचाई पर क्यों था और क्यों उस कंपनी में डाउन फॉल आने शुरू हुए। इसकी समझ केस स्टडी के द्वारा समझाया जाता है। ठीक उसी प्रकार इतिहास में या फिर राजनीति में भी इसका अध्ययन किया जाता है कि फलां साल या चुनाव में क्यों फलां पार्टी की जीत हुई और क्यों दूसरी पार्टी पिछड़ गई थी इसके कार्य कारण संबंधों के विश्लेषण के लिए अतीत का मंथन और विमर्श जरूरी होता है। ऐसे में अतीत की यात्रा हमारे लिए नई दृष्टि भी प्रदान करती है। वहीं अतीत की यात्रा में एक कठिनाई यह भी महसूस की जाती है कि हम अतीत में प्रवेश तो कर जाते हैं किन्तु वहां से सकुशल और कुछ ग्रहण कर कैसे वापस आना है इसकी कला हमारी पास नहीं होती। हम अतीत में अटक जाते हैं। जबकि अतीत में अटकना ख़तरनाक माना जाता है। हमें उस अतीत और स्मृतियों से, अपने पुराने रिश्तों से वो ऊष्मा लानी होती है जिससे हम वर्तमान को बेहतर बना सकें।

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