Friday, April 19, 2019

यादें कैसी कैसी ऐसी वैसी...



कौशलेंद्र प्रपन्न
यादों का क्या है। कोई भी घटना, कोई भी बात, कोई भी स्थान जिससे हमारी यादें जुड़ी हैं वो भूले नहीं भूल पातीं। वह चाहे अच्छी यादें हों या फिर खराब। यादें तो यादें हुआ करती हैं। हम सबके पास न जाने कैसी कैसी यादें हैं। हम शायद पूरी जिंदगी यादों को स्मृतियों में संजोया करते हैं। कई बार यादों की भी छंटनी करते हैं। जो अच्छी होती हैं उसे औरों से भी साझा किया करते हैं। साझा के दौरान कई बार चूक भी हो जाती है हम सही पहचान नहीं कर पाते कि जिसके साथ साझा कर रहे हैं कहीं वह आगे चलकर मजाक तो नहीं बनाएगा आदि। लेकिन इस सब से बेख़बर हम बस एक रवानगी में अपनी पुरानी यादें साझा किया करते हैं।
यादें तो जलियावालाबाब का भी है जिसके सौ साल पूरे हुए। यादें तो 1947 की भी है जब न केवल भौगोलिक तक़्सीम हुई थी बल्कि आंसुओं को भी हमने दो फांक किया था। उस विभाजन की याद आज भी तब की कहानियों, उपन्यासों, नाटकों में गूंजती हैं। उन्हें याद कर मन गहरे अवसाद में डूबने लगता है। वहीं यादें तो तक्षशीला, नालंद विश्वविद्यालय की भी है जिन्हें सोच सोच कर माथा दमके लगता है।
यादों का हम करते क्या हैं? कभी सोचा न होगा। बस यूं ही यादों की पोटली खोलना और उनमें से कुछ यादों को झाड़ पोछ कर देखना सुनना, सुनाना बेहद लुभाती हैं। कुछ देर उन यादों में तैरने के बाद वापस किनारे आ जाते हैं। इस किनारे पर कई बार दुखद यादें इतनी गहन हो जाती हैं कि नींद उड़ जाती है। निराशा और आत्म ग्लानि से भर उठते हैं।
उसका अचानक से चले जाना भी तो यादें ही हैं। उसके साथ बीताई बातें, मुलाकातें याद आती हैं। वह ऐसे हंसता था। वह वैसे पुकारा करता था। गले लगता तो पूरर शिद्दत से मिलता था। शहर का नहीं था। जहां से आता था वहां दिखावा न के बराबर था। वहां कुछ यदि था तो अपनापा।
हर मुलाकातें, हर किसी के साथ बातें करना हर बार सुखद नहीं होता। आप तो खुलेमन से किसी से बातें कर रहे हैं। लेकिन आपको मालूम ही नहीं होता कि आपकी कौन सी बात कौन सी गतिविधि कौन कैसे रिकॉर्ड कर रहा है। मौका आते ही वह बमन करने देगा। आपका अनुमान भी नहीं होगा कि जिस बात को आपने बेहद सहज और सरल मन से कहा था उसे किसी ने किस गहरे और ग्रंथी के साथ ग्रहण किया। आपकी बातें अभी तलक खदबदा रही थीं।
कहते हैं कि समय और परिवेश बदलते ही रिश्तों के मायने बदल जाते हैं। जो कभी इतने गहरे दोस्त हुआ करते थे वही एक दिन, एक रात या फिर अचानक बदल जाते हैं। महसूस ही नहीं होता कि कभी दोनों इतने गहरे दोस्त रहे होंगे। लेकिन मूर्ख वह व्यक्ति बनता जाता है कि जो आज की तारीख़ में भी रिश्ते को उन बीते पलों में ही देखता और स्वीकारता है। जबकि परिस्थितियां बदल चुकी हैं इसका इल्म उसे होना चाहिए। हर शब्द निकष पर कस कर बोलने की ज़रूरत होती है। वरना न जाने कौन सा शब्द आपके ख़िलाफ खड़ा हो जाए।

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