Thursday, March 15, 2018

पेपर लीक या व्यवस्था में छेद



कौशलेंद्र प्रपन्न
साल भर तैयार में लगे रहे। कहां कहां नहीं कोचिंग में समय लगाया। कितनां लोगों की नसीहतें सुनीं। घर में टीवी बंध। बाहर खाना बंद। घूमना फिरना बंद। लोगों का घर में आने जाने पर कर्फ्यू। खुद कितने दिन हो गए कहीं आना जाना सब बंद हो चुका है। बच्चों की बात तो है ही बड़ों की भी दिनचर्या कोई अच्छी नहीं है। दफ्तर से लेकर पड़ोसी तब। घर से लेकर कोचिंग तक हर जगह एक ही चर्चा। किसके घर में कौन पेपर दे रहा है। कितने सपनों को आंखों में संजोकर एक्जाम सेंटर पर जाते हैं। जूता,चप्पल, उतार कर परीक्षा कमरे में बैठते हैं। कहीं तो अंडरवीयर और बनियान में बच्चे बैठकर बच्चे परीक्षा देते हैं।
इधर हमारे बच्चे परीक्षा में कलम घीस रहे होते हैं उधर परीक्षा की रीढ़ प्रश्न-पत्र घर जेवार और दुकान में चक्कर काट रहा होता है। न जाने कहां कहां किस किस के हाथ में प्रश्न पत्र हल हो रहा होता है। धीरे से क्लास में भी हल सवाल पहुंच जाता है। जिनकी जितनी पहुंच उनके पास उत्तर हाज़िर। बाकी बच्चे जवाब लिखने में लगे होते हैं।
उन्हें क्या मालूम कि जिन सवालां को शिद्दत से हल कर रहे हैं वो तो बाहर कब का हल हो चुका है। कुछ बच्चे अच्छे अंक लेकर कहीं बड़े नामी गिरामी संस्थान में दाखिल हो जाएंगे। रह जाएंगे तो बस वे जिन्हें कहीं कोई नहीं सुनता।
परीक्षा से पहले पेपर कैसे लीक हो जाते हैंं। कौन सी कड़ी है या वो कौन का छेद है जिसमें से पेपर हुर हुर कर नीचे गिरने लगता है। गोया रेत हो। हमें जानने की ज़रूर है और जिम्मदार कड़ी भी देखने होंगे ताकि उसे ठीक किया जा सके। पेपर का परीक्षा हॉल से बाहर आना कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब अत्यंत विश्वसनीय संस्थानों के पेपर भी बाजार में लुढ़कते नज़र आएं तो एकबारगी विश्वास की पेंदी डोलने लगती है।
परीक्षा के पेपर बनाने वाले जानते हैं कि किन किन स्तरों पर सावधानी बरती जाती है। चाहे वह स्कूल स्तर हो, कॉलेज हो या विश्वविद्यालय हर स्तर संभवतः सावधानी तो बारती ही जाती है फिर पेपर बाहर कैसे आ जाते है? क्या उनके पर निकल आते हैं या पांव जिसके बदौलत बाजार घूमने लगते हैं?
न तो पर निकलते हैं, न पांव, और न ही कोई ताकत जो पेपर को बाजार में चलने और दौड़ने की ताकत दे सके। बल्कि हमारी ख़ुद की इच्छा और लोभ इतनी ताकतवर हो जाती है कि उसके आगे हम घुटने टेक देते हैं। वह चूक किसी भी किसी भी स्तर पर संभव हैं पेपर बनाने वाले से लेकर डिस्पैच, टाइपराइटर, कंपोजर, प्रिंटिंग, से लेकर परीक्षा केंद्र पर पहुंचने में कहीं भी कभी भी चूक हो सकती है। किसी का भी ईमान डोल सकता है। यदि एक बार डोला तो क्या वज़ह है कि दूसरी बार न डोले। और यह सिलसिला निकल पड़ता है।
सीबीएससी 2018 के 12 वीं के कैमेस्टी और एकॉउंट के पेपर लीक हो चुके हैं। वहीं फरवरी में कर्मचारी चयन आयोग क पेपर लीक हो चुके हैं। 2003 में पहली बार आईआईएम ने मिलकर ज्वाइंट पेपर ऑनलाइन कराने फैसला किया। इस सिस्टम में चूक नहीं होगा ऐसा मानना था। लेकिन टाईटेनिक की तरह वह विश्वास चूर चूर हो चुका। लेकिन इस आईस बर्ग से टकराने तो हमारे बच्चे हैं। बच्चों के विश्वास और जीवन टकराती हैं। उनके सपने डूबने से लगते है।

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