बचपन में,
बदल देता था
तमाम लिंग।
लड़का-लड़की,
वचन भी बदल देता था,
एक को बहुवचन में।
मास्टर जी-
सीखाते,
लिंग वचन बदलो
और झट से बदल देता था दुनिया के लिंग।
अब जब
बड़ा हो गया हूं
एक लिंग भी नहीं बदल पाता।
स्त्री लिंग-पुंलंग में-
सीखी तालीम,
सब गड़बडत्र हो गई।
िंलंग बोध-
गोया भूल सा गया हूं,
सब के सब नपुंसक लिंग नजर आते हैं।
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