उसकी बातें खोलती परतें बचपन की
सूर्योदय ने कहा ‘‘अंकल! आपके पास दस रुपए हैं?’’
मैंने कहा ‘‘हां है, क्या करोगे?’’
उसने कहा ‘‘दीजिए।’’ और उसने वो दस रुपए लगकर बल्टी हाथ में लिए बच्चे को पकड़ा दिया।’’ बच्चे ने खाने की बात कर रहा था।
मैंने पूछा ‘‘ऐसा क्यों किया सूर्योदय?’’
उसने जवाब दिया ‘‘ पापा उसे पांच रुपए देते हैं। पांच रुपए क्या आता है अंकल आप ही बताओ?’’
सूर्योदय ने आगे अपने बातें जारी रखीं।
उसने पूछा ‘‘क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूं?’’
और उसने सवाल पूछने शुरू किए।
‘‘अंकल पाकिस्तान का नाम पाकिस्तान क्यां और कब पड़ा?’’
मैंने उसे इतिहास की हकीकत को आसान बनाते हुए जवाब देने की कोशिश की। फिर मैंने यह जांचने की कोशिश की कि क्या उसे मेरी बात समझ में आई। और मैंने पाया कि उसे मेरी बात समझ में आ रही हैं।
‘‘अंकल चीन ने हम पर क्यों हमला किया? नेहरू जी ने क्या जवाब दिया था?’’
फिर मैंने उसे इन ऐतिहासिक तथ्यों से रू ब रू कराने की कोशिश की।
सूर्योदय के सवाल अभी रूके नहीं थे। उसके सवाल मुझे किसी और स्तर पर सोचने की ओर धकेल रहे थे।
और इस तरह से सूर्योदय से मेरी बातचीत तकरीबन आधे घंटे चली होगी। उस चर्चा के दौरान मालूम चला कि एक दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे की सोच और चिंतन प्रक्रिया कितनी तेज और किस दिशा में जा रही है। उम्र से बच्चे की दुनिया को आंकने की बजाए उसकी चिंतन भूमि को ध्यान में रखना चाहिए।
शाबाश सूर्योदय यूं ही अपनी सोच को हवा पानी दो
2 comments:
वाकई सूर्योदय अपनी उम्र से कहीँ आगे का है,हमारा भविष्य जो हैं।
Perfect well said Bhai. he is going on the right track..god bless him.
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