‘14 सितंबर 1936-13 नवंबर 2013’
14 सितंबर 1936 में जन्में दीनानाथ मिश्र जी पत्रकार और संपादक के साथ ही बेहतरीन व्यंग्यों से पाठकों को दशकों तक झकझोरते रहे। उनका आर-पार काॅलम कटाक्षों से भरा होता था तो वहीं ख़बरम् राजनैतिक-सामिजक विश्लेष्णों से लबरेज हुआ करता था। पांच्जन्य में सहायक संपादक और अंतिम तीन वर्षों में प्रधान संपादक रहे।
आपातकाल में जेल में भी रहे। उन्हीं दिनों अटल बिहारी वाजपेयी की कैदी कविराय की कुंडलियां, का संपादन किया। वहीं नवभारत टाइम्स में विशेष संवाददाता और ब्यूरो प्रमुख भी रहे। आपातकाल में इन्होंने गुप्त क्रांति किताब लिखी वहीं आर एस एसः मिथ एंड रियलिटी किताब भी लिखी।
शरद जोशी, हरिशंकर परसाई, शंकर पुणतांबेकर जैसे व्यंग्य बाण भी खूब चलाए जिसको प्रभात प्रकाशन ने हर हर व्यंग्ये और घर की मुरगी नाम से किताब के रूप में लाया।
पपा जी थे मेरे। बचपन से उन्हें इन्हें इसी नाम से पुकारा। सुबह कम से कम 15- 20 अखबार पढ़ते ही देखा। फिर काॅलम लिखवाने की बारी आती। कई कई बार देर रात तक पढ़ते-लिखते देखता आया हूं। एक बार उन्होंने कहा जब पूरी दिल्ली सो रही होती है तब मैं जगा काम कर रहा होता हूं।
उनकी आत्मा को प्रभू शांति दे।
जिन्होंने दैनिक जागरण के लिए इतने लिखे उस अखबार में एक सिंगल काॅलम की जगह भी नहीं मिली। क्या है पत्रकारिता ज़रा सोचें।
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