वो बेचारी हमेशा रहती घर से बाहर,
धुप पानी ,
सर्दी गर्मी ,
हर मौसम में सदा बिना उफ़ किये।
उसकी कहाँ किस्मत की रहे गैराज में
हाँ कुछ को मिल जाती हैं गैराज ,
लेकिन कई हैं कारें जो हमेश रहती हैं ,
घर के बाहर ,
इंतज़ार में की साहेब,
हमें भी नहला दो ,
की जैसे नहाते हैं बच्चे ,
बेचारी कार ,
नहीं आ पाती घर में,
की जैसे नहीं आती घर में धुप ,
रौशनी ,
कई कारो के भाग्य में नहीं होता नहाना ,
घर.
No comments:
Post a Comment