यूँ तो पुनिश्मेंट पर हाई कार्ट ने पाबंदी लगा राखी है. लेकिन उनसब के बावजूद स्कूल में इस किस्म की घटनाएँ घटती रहती हैं.
सहनशीलता दोनों ही तरफ घटी हैं. शिक्षक भी और छात्र भी दोनों ही आज कल अशांत हो चुके हैं. इक तरफ मानसिक तो दूसरी तरफ शारीरिक और समाज की और से शिक्षा और बच्चों पर दब्वो बढता जा रहा है. इसी का परिणाम है, इस किस्म की घटनाएं.
दुसरे शब्दों में कहें तो क्लास्स्रूम की प्रकृति को समझने की बेहद जरुरत है. तनावों, दाबों को पार करते हुवे बच्चों को गढ़ना इक जोखिम भरा काम है.
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