नौटियाल गए....शहरयार भी चले गए....साहित्य हो या आम जीवन किसी के जाने के बाद वो लोग बेहद याद आते हैं. वहीँ दूसरी और खास बात यह की राम दरश मिश्र जी को उनकी आम के पत्ते के लिए व्यास पुरस्कार मिला.
साहित्यकार जब भी अपनी गवई अनुभवों को कागज़ पर आकार देता है वो पाठकों को तो काफी करिईब लगता है साथ ही वह अनुभवों का नवीकरण भी होता है.
हम कितने भी शहरी हो लें लेकिन हमारी स्मृति में हमारा गावों और गावों के पल हमेशा साथ रहते हैं. साहित्यकार कुछ भी नहीं करता बल्कि वो हमारी स्म्रित्यों में पड़ी यूँही यादों को सहता और ताज़ा कर देता है. हम सभी को लेखक की बातें अपनी लगती हैं.
साहित्यकार जब भी अपनी गवई अनुभवों को कागज़ पर आकार देता है वो पाठकों को तो काफी करिईब लगता है साथ ही वह अनुभवों का नवीकरण भी होता है.
हम कितने भी शहरी हो लें लेकिन हमारी स्मृति में हमारा गावों और गावों के पल हमेशा साथ रहते हैं. साहित्यकार कुछ भी नहीं करता बल्कि वो हमारी स्म्रित्यों में पड़ी यूँही यादों को सहता और ताज़ा कर देता है. हम सभी को लेखक की बातें अपनी लगती हैं.
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