बता क्या करा जाए जब कोई बात आपस में बातो बातो में अटक जाए तो। चाह कर भी ज़ल्द उसकी आवाज़ दबी नही जा सकती। कई बार येसा होता है की सामने वाला बिना सोचे जो बोल गया उसका क्या असर होगा वह तो बोलने के प्रवाह में कह जाता है मगर सुनने वाले पर जो असर होती है उससे वह बेखबर ही रह जाता है। अगर समाये पर भाव पकड़ ले तो मामला बन सा जाता है। लेकिन येसा न हुवा तो आपसी ताना तनी शरू हो जाती है। आप चाहें तो मिसुन्देर्स्तान्डिंग कह सकते हैं। और यह सुलझ सकता है ब्शेरते की बात चित हो वो भी खुले मनन के साथ। मगर येसा कम हो पता है, अकसर पूर्वाग्रह बने बनाये काम को मिटटी में मिला देता है। होता बिल्कुल अलग है मामला और भी ख़राब हो जाता है।
कई बार मान लिया जाता है की वो तो येसा ही है येसा ही सोचता है हमें चाहिए यह की ज़रा उसकी जगह रख कर ख़ुद को परख लिया जाए।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...
-
प्राथमिक स्तर पर जिन चुनौतियों से शिक्षक दो चार होते हैं वे न केवल भाषायी छटाओं, बरतने और व्याकरणिक कोटियों की होती हैं बल्कि भाषा को ब...
-
कादंबनी के अक्टूबर 2014 के अंक में समीक्षा पढ़ सकते हैं कौशलेंद्र प्रपन्न ‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘कविता की संवेदना’, ‘आलोचना का स्व...
-
bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
No comments:
Post a Comment