क्या कोई किसी कि ज़िन्दगी में इस कदर शामिल हो जाता है? क्या किसे कब अच लग जाए कब पीछे चला जाए कुछ भी तै शुदा नही।
जब कोई चला जाता है तब महसूस होता कि उस नाम का क्या और किस तरह का प्रभाव होगा या होता है। ह्स्स्र कि जहाँ तक बात है मंज़र तो यह भी होता है कि सुबह हो या रात या फिर कोई भी पल उसके ख्याल से खाली नही होता।
लेकिन जो भी कदम किचता है वो काफिर भी तो नही हो सकता।
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