पाक और भारत के दरमियाँ सार्थक बातचीत तभी हो सकती है जब पाक अपने पाक इरादे से बातचीत के लिए तैयार हो। लेकिन उस की समस्या यही है की वहां की सरकार १९४७ के विभाजन पर ही शासन कर रही है। ज़रा सोचें जो सरकार देश अतीत में अटकी चेतना के दोहन कर के शासन कर रही है वो किसी भी सूरत में सार्थक संवाद कैसे कर सकती है। बेशक पाक विश्व के दवाव में आतंक के खात्मे पर ताल थोक कर खड़ा हो जाएमगर उस देश के लोग उसे वैसा करने नही देंगे। ज़रदारी के साथ क्या हुवा सब जानते हैं, इधर मनमोहन जी को कहा के पाक ने आतंक के लिए अपनी ज़मीं के इस्तमाल होने दिया है। यह कहना था की पाक की अस्सिम्बली में सरकार को घेर लिया गया। जिसमे नवाज़ शरीफ की भी अहम् भूमिका रही।
पाक के साथ हमारे रिश्ते यूँ सुधर नही सकते जब तक की पाक अपनी तरफ़ से आतंक को बधवा देना बंद नही कर देता। मगर उस देश के सामने जो मंज़र है उसे भी हमें समझना होगा। कुछ कदम हमें भी बढ़ने होंगे जो पाक में अमन चैन ला सके। क्या पाक महफूज है येसा नही कह सकते। बहरहाल वकुत तो लगेगा दोनों देशो में विश्वाश बहल होने में,।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Thursday, July 16, 2009
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
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