समलैंगिक को कलिफोर्निया में शादी करने और साथ रहने की कानूनी अधिकार मिल चुका है मगर भारत में अभी मुमकिन तो नही लगता मगर रविवार को दिल्ली में बड़े पैमाने पर समलैंगिक और लीस्बियन का दल दिल्ली की सड़क पर अपने अधिकार के लिए मार्च किया
भारत में इसलिए ज़रा कठिन हैं इसको मान्यता देना भारत में अभी रिस्तो की गरिमा बरकारर हैं साथ ही यहाँ पर धर्म और सबसे ज़यादा यह की लोग पुराने ख्याल के हैं
पर देखते हैं क्या यह बयार हमारे देश में भी बह सकता हैं !
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Monday, June 30, 2008
अंजुरी में
अंजुरी में तुम हो
जब भी इबादत
के लिए हाथ बढती हैं
बस तुम ही आती हो
खुदा पूछता है बता तेरी
रजा क्या है
कुछ भी तो मुह से नही निकलता है
बस एक नाम जो मेरे संग डोलता है
वही अंजुली में झाकती है
जब कभी इबादत में होता हूँ
बस एक नही दो आखें सवालों भरी पूछती हैं
कहाँ रहे
कब से अजान में हूँ
पर
जब भी इबादत
के लिए हाथ बढती हैं
बस तुम ही आती हो
खुदा पूछता है बता तेरी
रजा क्या है
कुछ भी तो मुह से नही निकलता है
बस एक नाम जो मेरे संग डोलता है
वही अंजुली में झाकती है
जब कभी इबादत में होता हूँ
बस एक नही दो आखें सवालों भरी पूछती हैं
कहाँ रहे
कब से अजान में हूँ
पर
Sunday, June 29, 2008
सिक्चो पर
तारें नही घूमते घूमते हैं आखों में झाकती उमीद भरी बातें
ट्रेन खुलने वाली थी माँ की आखें थीं की बस सब कुछ कह देना था इससे पहले
लोर आ आ कर कह जाते अन्दर की आह कब तक घर बसवोगे
उम्र जयादा कहाँ है
देख ले सफर पर निकलने से पहले
ट्रेन खुलने वाली थी माँ की आखें थीं की बस सब कुछ कह देना था इससे पहले
लोर आ आ कर कह जाते अन्दर की आह कब तक घर बसवोगे
उम्र जयादा कहाँ है
देख ले सफर पर निकलने से पहले
Friday, June 27, 2008
प्यार के वक्त
सच ही तो है
तुम साथ होते हो तो
लगता है सूरज
इतना करीब है की
अंजुली में रख कर
निहार सकती हूँ
कि छु सकती हूँ
हर पल
तुम साथ होते हो तो
लगता है सूरज
इतना करीब है की
अंजुली में रख कर
निहार सकती हूँ
कि छु सकती हूँ
हर पल
तभी तो
जब कभी आप किसी के साथ होते हैं तब वास्तव में आप होते हैं क्या
ज़रा सोचें तो सही
मुझे लगता है
हम सच नही बोलते की जिसके साथ हम रहते है
दर्हसल हम किसी और के साथ की आस में बैचन होते हैं
ज़रा सोचें तो सही
मुझे लगता है
हम सच नही बोलते की जिसके साथ हम रहते है
दर्हसल हम किसी और के साथ की आस में बैचन होते हैं
सब कुछ तो था
सब कुछ तो था और है
पर क्या है जो
अक्सर सालता है
की नही है
है कुछ जो अभी तलाश है
कुछ तो है
जिसके पीछे
हम भागते रहते हैं
ताउम्र
पर क्या है जो
अक्सर सालता है
की नही है
है कुछ जो अभी तलाश है
कुछ तो है
जिसके पीछे
हम भागते रहते हैं
ताउम्र
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