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Thursday, March 27, 2008
जैसा भी है आपका है
आप जहां भी होंगे बस यूं समझें कि एक आंख है जो हर पल आप ही पर टंगी रहती है इसे नाम कुछ भी दे सकते हैं चाहें कुछ देर के लिए इसे अकेले बैठे का खाली चिंतन कह लें लेकिन क्या इस बात से इंकार कर सकते हैं कि जो भी अपनी तमाम चीजें छोड़कर आपकी खातिर आता है उसकी देखा भाल की जिम्मेदारी नहीं बनती हां है तो फिर क्यों न उसे निभाया जाए बहरहाल जो भी हो आप बस इतना
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
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