Friday, January 18, 2019

अन्न दान करते वो लोग



कौशलेंद्र प्रपन्न
सिमरन नाम है उस युवा का। जो अपने साथ चार और साथियों के साथ सफ़दरजं़ग अस्पताल के बाहर रोगियों के साथ आए अन्य सेवाटहल करने वालों और सड़क पर सोने वालों के लिए शुक्रवार के शुक्रवार भोजन बांटा करते हैं। इस सर्दी पर पूरी दिल्ली सोने की तैयारी कर रही हो उसमें कोई है जो भूखों के लिए भोजन लेकर खड़ा है। उस भोजन को हासिल करने के लिए कम से कम सौ लोग तो लाईन में लगे ही हैं। शायद यह किसी तथाकथित महाकुंभ में स्नान करने से ज़्यादा फलदायी कर्म है।
किसे नहीं मालूम कि सफ़दरज़ंग हो या एम्स यहां लंबी कतारें मर्ज़ दिखाने वालों रोगियों के साथ आने वालों की भी दशा कोई ख़ास ठीक नहीं होती। वो भी तब जब रोगी उत्तराखंड़, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से आता है। उसके लिए पटरी पर ही बसर करना लिखा होता है। यदि उसकी जेब भारी है तो वह लॉज, होटल, या फिर अन्य जगहों पर भी रातों काट लिया करता है। लेकिन जो पहले ही सुविधा से हीन हैं। जिन्हें रोगी के इलाज के लिए मकान, दुकान, खेत भी बेचना पड़ता है वह इलाज में पैसे लगाए या फिर किसी होटल में रहने में। एम्स के बाहर सोने वाले वालों कई बार न्यूज चैनल में स्टोरी कवर की गई। किन्तु सरकारें आती जाती रहीं। उनके लिए वही पटरी आज भी है और कल भी वही बसेरा हुआ करता था।
सिक्ख समुदाय के सिमरन ने बताया कि हर शुक्रवार को शाम दो घंटे इनलोगों को भोजन बांटा करते हैं। आलोचना से परे क्या हम सोच सकते हैं कि जो लेग एक रात के जागरण में लाखों का स्वाहा कर दिया करते हैं। काश वो लेग इन जगहों पर सचमुच के नर सेवा कर पाते। तो संभव है नारायण सेवा भी इसी में शामिल हो जाए। लेकिन नहीं हमारी िंज़द्द है कि हम इन कार्यां में पैसे लगाने की बजाए फलां मंदिर, फलां मूर्ति पर ज़्यादा ध्यान दिया करते हैं। कहने वाले कह सकते हैं कि यह तो सरकार करे उसके जिम्मे ऐसी सुविधाएं मुहैया कराना है। स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा आदि। लेकिन कभी सरकार के समानांतर हम भी कुछ कर सकते हैं जिससे वास्तव में ज़रूरतमंदों की मदद मिल सकती है।

1 comment:

Kumar Bindu said...

संवेदना को जगाने वाली टिप्पणी । साधुवाद ।

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