कौशलेंद्र प्रपन्न
जैसे हम मॉल्स जाया करते हैं। वैसे ही हमें कई बार अस्पताल जाना होता है। जाना ही नहीं बल्कि कई बार रात दिन रूकना भी पड़ता है। इस दौरान हमारी समझ तो यही बनती है कि डॉक्टर अपना काम मजबूती से करे। छूट्टी न ले। ऑपरेशन समय पर करे। लेकिन जब उसके पास तय ऑपरेशन से ज्यादा मरीज खड़ें हो तो क्या कहेंगे। फर्ज कीजिए आपका नंबर था आज ऑपरेशन होना है। लेकिन उसी दौरान कोई अन्य क्रीटिकल मरीज आ जाए तो हमें डॉक्टर की स्थिति को समझना चाहिए।
एक डॉक्टर कितने घंटे बिना थके। बिना उफ्््!!! तक किए ऑपरेशन कर सकता है। उसे भी मानवीय थकन तो घेरती होगी। जब वह ऑपरेशन कक्ष में जाता है तब उसे भी मालूम नहीं होता कि वह कब बाहर आएगा। कई बार अनुमान से ज्यादा बड़ी बीमारी की स्थिति उसके सामने प्रकठट हो जाती है। ऐसे में वह तमाम जरूरी और महत्वपूर्ण कामों और पूर्व तय कामों को ताख पर रख देता है।
हमारा डॉक्टर किन हालात में ऑपरेशन कक्ष में जाता है इसका हमें शायद अंदाज भी नहीं होता। लेकिन वह बड़ी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश करता है। हालांकि इसी समाज में डॉक्टरी पेशे से भी ऐसी ऐसी ख़बरें आती हैं जिन्हें सुन और देख कर ताज्जुब होता है कि कैसे कैसे डॉक्टर इस पेशे में आ गए हैं। जिन्हें ऑपरेशन करना था दाई टांग की लेकन तनाव या दबाव या फिर काम के दबाव में बिना पूरी तरह से जांच किए ग़लत ऑपरेशन कर देते हैं।
जैसे अन्य पेशों में हड़ताल हुआ करते हैं। वैसे ही इस प्रोफेशन में भी विभिन्न मांगों और सेवाओं के लिए हड़ताल होना स्वभाविक है। लेकिन जब ये लोग सेवा में लौटते हैं वैसे ही फाइलों की तरह ही मरीजों की लंबी फेहरिस्त हो जाती है। जिन्हें ऑपरेट या उपचार करना होता है। जो भी हो। हर पेशे की कुछ सावधानियां और जिम्मेदारियां हुआ करती हैं। जिन्हें पूरा ही करना होता है। डॉक्टर की जिम्मेदारी तो यही हेती है कि वो मरीज का उपचार ठीक करें।
1 comment:
बहुत बढ़िया आलेख सर,,, हमें समझना चाहिए,,,हम पैसा देकर ,,,डॉक्टर की सेवाएं लेते हैं,,,उसे नहीं खरीद लेते ,,,मानवीय थकान सबको होती है
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