Monday, November 12, 2018

उम्र के उस पड़ाव पर...



कौशलेंद्र प्रपन्न
उम्र हम पर कब भारी पड़ने लगे यह हम कुछ भी तय रूप में नहीं कह सकते। प्रसिद्ध कथाकार,पत्रकार प्रियदर्शन जी की एक कविता से उधार लेकर शब्दों में बांधना चाहूं तो यह होगा कि उम्र हमारी कनपट्टियों से उतरा करती है। यानी सफेदी के साथ एहसास पुख़्ता होने लगता है कि हम अब उम्रदराज़ होने लगे। पता नहीं चलता कि कब हमारी कनट्टियों के काले कलम सफेद होने लगे। जिसे हम रंग रोगन से छुपाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन सफेदी है कि छुपाए नहीं छुपती।
उम्र के साथ कुछ ज़रूरी पहचान हमारे व्यक्तित्व में आने लगते हैं। मसलन जल्दी चीजें भूलने लगना। ब्लड प्रेशर का बढ़ना, मधुमेह के गिरफ्त में आने लगना आदि। बच्चे बड़े होने लगते हैं। उनकी कॉलेज की पढाई खत्म होकर नौकरी पेशे की चिंता हमारी िंचंता होने लगती है।
यदि सही कॉलेज मिल गए तो तीसरे साल की चिंता कैम्पस प्लेसमेंट में अच्छी कंपनी उठा ले जाए। जॉब का पैकेज अच्छा हो। अगर सरकारी नौकरी मिल जाए और भी अच्छा। सरकारी नौकरी से खुद रिटायर होकर एक मकान तक नहीं बना पाते लेकिन बच्चों के लिए सरकारी नौकरी की उम्मीद पाले बैठे होते हैं।
देश के किसी भी कोने में घूम आएं हर सरकारी क्वाटर का नैन नक्श तकरीबन एक से ही होते हैं। अपनी अपनी पहचान दूर से ही हो जाया करती हैं। रिटायरमेंट के करीब पहुंचने पर एहसास मजबूत होने लगता है कि यार हमने तो जीवन में कुछ किया नहीं कम से कम मेरा बच्चा तो कर ले। मैंने ये नहीं किया, वो नहीं किया आदि आदि के मलालों से भरे हुए हम फिर बच्चों को अपनी कहानियां सुनाया करते हैं।
लाचारगी और दूसरों पर निर्भरता बढ़ने लगती है। यदि बच्चा दूसरे शहर में नौकरी कर रहा है तब हमारी मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं। हम चाहते हैं कि साल में कई दफा चक्कर काटा करे। पर्व त्येहार पर बाल बच्चों के साथ आया करे। लेकिन यह भूल जाते हैं कि हमारा बच्चा जिस कंपनी में काम कर रहा है वहां छुट्टियों की कितनी दिक्कत होती है। लेकिन हम यह समझ नहीं पाते। तकरार यहां भी होती है दो पीढ़ियों के दरमयान।
कई बार हमारी उम्र हमारी आदतों, रोज दिन के कामों और स्वभावों को भी ख़ासा प्रभावित करता है। हम अक्सर छोटी छोटी बात पर नाराज़ हो जाया करते हैं। हमें लगता है कि हमारी तो कोई सुनता ही नहीं। हमने क्या अपने जीवन में यूं ही बाल सफेद किए हैं। मगर होता इससे उलट है। कभी कभी हमें दोनों की ही स्थितियों को समझने की आवश्यकता होती है।

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