कौशलेंद्र प्रपन्न
कहानी लिखना और सुनना जितना आसान है उससे ज़्यादा शायद कहानी कैसे पढ़ाएं यह समझाना है। कहानियां हम खूब लिखते-पढ़ते और सुनाते हैं लेकिन जब कहानी बच्चों को कैसे पढ़ाएं यह उतनी ही चुनौतिपूर्ण होती है।
कहानी कहना और कहानी पढ़ाना भी एक कौशल माना जाता है। इस कौशल को भी हम अभ्यास से सीख सकते हैं।
हमने डॉ विभास वर्मा, कथाकार, संपादक, आलोचक और शिक्षक को कार्यशाला में आमंत्रित किया। इन्होंने जिस शिद्दत और बारीक तरीके से कहानी की बुनावट के बारे में बात की वह सचमुच अनुकरणीय रहा। शिक्षकों को इस सत्र में काफी कुछ सीखने को मिला।
हां शुरुआत में शिक्षकों को यह सत्र थोड़ा शुष्क और एकालाप सा लगा किन्तु आगे चल कर इससे जुड़ते चले गए। बीच बीच में मुझे कहना और समझाना पडा कि हर व्यक्ति की अपनी ख़ामियतें होती हैं। हर किसी की अपनी ख़ास प्रकृति होती हैऔर उसकी शैली भी। इसलिए किसी और से तुलना करना ठीक नहीं।
धीरे धीरे व्यक्ति अपने स्तर और गांठों को खोला करता है।इसलिए थोड़ा इंतज़ार कीजिए। व्यक्ति तुरंत नहीं अपनी विशेषताएं खोला करता है।इंतज़ार करें और देखें कि सामने वाला व्यक्ति क्या और कैसे अपनी बात को रखने की कोशिश कर रहा है।जैसे जैसे हम प्रतीक्षा करते हैं वैसे वैसे और और कंटेंट आकार लेते हैं।
कुछ ने कहा बोलने में ज़रा अधिक समय ले रहे हैं। शब्दों और वाक्यों के चुनाव में इन्हें ज़्यादा समय लग रहा है। जबकि भाषा और कहानी के व्यक्ति को इतना समय तो नहीं लगना चाहिए सर।
मान कर चलें कि हर कोई वक्ता ही हो यहह ज़रूरी नहीं। हर लेखक एक बेहतर वक्ता हो संभव नहीं। उसकी विधा लेखन की है। वक्ता की विधा बोलने में है। संभव है वह लेखन उतना बेहतर न कर पाए जितना अच्छा वह बोलता है।
बहरहाल अपना तज़र्बा तो यह कहता है कि ज़रूरी नहीं कि हर व्यक्ति बहुत अच्छा वक्ता ही हो। अच्छे अच्छे लेखक मंच पर उतनी धारदार तरीके से अपनी बात नहीं रख पाते। शायद इसमें नाटकीय कला की मांग हो, किन्तु वे औरों से बेहतर लिखते हैं।
1 comment:
बिलकुल सही, लेखकों में एक अच्छा वक्ता भी छुपा हो ये ज़रूरी नहीं, उनका लेखन ही उनका असल वक्ता होता है ।
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