कौशलेंद्र प्रपन्न
अंतःसेवाकालीन शिक्षक शिक्षा संस्थान, टेक महिन्द्रा फाउंडेशन, पूर्वी दिल्ली नगर निगम में समावेशी शिक्षा और प्राथमिक कक्षायी बच्चे एक व्याख्यान रखा गया। इस व्याख्यान में सुश्री प्रीति,स्वयं नेत्रहीन थीं। इन्होंने अपने जीवन अनुभवों और शैक्षिक चुनौतियों पर अपने विचार रखे। शिक्षा में अब समय बदला है। नज़र भी बदली है। शिक्षा में थोड़ी उदारता आई है। अब हम दिव्यांग बच्चों को देशज भाषा में बुलाने से परहेज़ करते हैं। ऐसे विशेष बच्चों के साथ शिक्षकीय बरताव में भी परिवर्तन आए हैं। शिक्षा में समावेशीकरण की घटनाएं हो रही हैं। ऐसे कोर्ठ भी बच्चे शिक्षा की मुख्य धारा से कट न जाएं इसका ख़्याल रखा जा रहा है। यह व्यवहार से लेकर शिक्षा नीतियों में भी दिखी जा सकती हैं।
जन्मांध, या अन्य शारीरिक विकार व विक्लांगता को शिक्षा हासिल करने में बाधा न बने इसके लिए नागर समाज और सरकारी स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। संभव है यही कारण है कि अब बच्चे अपने बीच पढ़ने,खेलने वाले बच्चों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। उनकी मदद के लिए वे तत्पर होते हैं।
बच्चा तो बच्चा होता है। उसकी नैसर्गिक शारीरिक व मानसिक अक्षमता को शिक्षा प्राप्त करने में व्यवधान न बने इसके लिए हमें आग आने की आवश्यकता है। वास्तव में जब सभी बच्चे शिक्षा की परिधि में होंगे तभी बच्चों सहित समाज का विकास संभव हो पाएंगा।
1 comment:
I totally agree what u wrote ,because all r same n different in some way ..so all should equal opportunity
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