प्रिय पाखी,
शुभाशीष।
मैं यूं तो कोई सिलेब्रेटी नहीं हूं। न मैं नेहरू हूं और न इब्राहम लिंकन ही हूं। जिन्होंने अपनी बेटे और बेटे के लिए ख़त लिखे और इतिहास में दर्ज हैं। मैं एक साधारण व्यक्ति हूं। शिक्षा का विद्यार्थी ठहरा। मैं यह ख़त इसलिए लिख रहा हूं कि आज तुमपर और तमाम पाखियोंं और विभू पर बहुत कुछ बनने का दबाव है। लेकिन तेरे मन की उलझन कोई समझ नहीं पाता।
अ से अनार तो पढ़ा ही होगा। अ से आड़वाणी और अ से अमिताभ भी अपने ज्ञान में जोड़ लो। तुम अपनी जिंदगी में आड़वाणी बनना चाहती/चाहते हो या अमिताभ। यह चुनाव तुम पर छोड़ता हूं। क्योंकि अंत में होना तुम्हें तुम जैसा ही है। अगर दबाव में या अन्यों की इच्छाओं को जीती रही तो सवाल है तुम स्वयं क्या बनना चाहती हो यह कहीं दबा रह जाएगा। यह आगे चल कर बदबू करने लगेगा। क्योंकि तुमने अपनी इच्छाओं और कल्पनाओं को कहीं दबा कर जीओगी।
आड़वाणी और अमिताभ अपने क्षेत्र के स्थापित नाम और काम हैं। इनके काम और कर्मठता बोलते हैं। इन्होंने अपने क्षेत्र में जी जान लगा दी ताकि अपने सपने को जी सकें। काफी हद तक जीया भी। लेकिन तुम्हें तो पता ही है बहती हुई नदी और नई नई कल्पनाएं जीवन में उमंग भरती हैं। जहां तुम कल्पना करना और बहना छोड़ दोगी वहीं गंदली होने लगोगी। अमिताभ ने भी अपने सपने को पूरा करने के लिए दिनरात एक की। कठिन मेहनत और अपने काम से प्यार व्यक्ति को उसके सपनों के करीब ले जाता है। आड़वाणी आज अपने कर्म और मेहनत से जीवन में मकाम पाया। लेकिन पाखी कहीं लगता है वो ठहर गए। वहीं अमिताभ आगे आगे बढ़ते जा रहे हैं। इस उम्र में भी वो अपनी मेहनत की बदौलत खड़े हैं बल्कि दौड़ रहे हैं। पाखी तुम्हें चुनना होगा कि तुम जीवन में ठहरना चाहती हो या आगे बढ़कर अपने सपने जीना चाहती हो।
रास्ते कठिन होंगे। होंगे ही। इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन ख़तरों से डर कर घर बैठ गई तो सपनों का क्या होगा जो तुमने रोज संजोए हैं। तुम्हें पढ़ना है। पढ़ने से ज्यादा आस-पास को समझने है। समझना है कि कौन रास्ता दिखा सकता है। कौन मार्गदर्शक मंडल में है। क्या उसकी सुननी चाहिए। किसकी सुनो यह भी तुम्हें तय करना होगा। क्योंकि सुनाने वालों की भी कमी नहीं है। सुनाने के लिए पूरा बाजार तैयार है। स्कूल तैयार है और तो और समाज भी। लेकिन तुम्हें सावधानी से सुनना चाहिए।
डॉ हरनेक सिंह गिल के लेक्चर से प्रभावित होकर आभार गिल साहिब !!!
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