सरकारी स्कूल अब तकरीबन सवा महिने के बाद खुलेंगी। शिक्षकों को भी इन अवकाश में घर जाने, घुमने फिरने का मौका मिलेगा और बच्चों को भी। बच्चे अपनी अपनी नानी, दादी के गांव जाएंगे। कुछ समय के लिए शहराती बरतावों से दूर गांव की हवा खाकर आएंगे। जिनके पास उड़ने के पैसे हैं वे देश विदेश घूम कर आएंगे। और जो यहीं रह जाएंगे वो अपने अपने घरों में रहेंगे। कुढ़ेंगे और कोसेंगे।
शिक्षकों के पास इन छृट्टियों का सही इस्तमाल की कोई येजना तय नहीं होती। अपनी व्यावसायिक कौशल विकास, दक्षता आदि की योजना न होने के कारण वे वहीं के वहीं रह जाते हैं। जबकि सरकारी स्तर पर इन छृट्टियों में कुछ कार्यशालाओं को आयोजन होता है जिसमें वे बेमन और दबाव में आया करते हैं। जबकि उनकी खुद की इच्छा होनी चाहिए ताकि वे अपना प्रोफेशनल विकास कर सकें।
शिक्षक वर्ग में यह सवा महिने पूरी तरह से छृट्टियों के तौर पर आते हैं। इनका इस्तमाल वे केवल घर-देहात घूमने और घर ठीक कराने में लगाते हैं। जबकि होना यह भी चाहिए कि वे अपने इस समय का सदुपयोग अपनी दक्षता और व्यावसायिक विकास के लिए भी करें। अमूमन देखा तो यही जाता है कि वे घरेलू कामों और निजी व्यस्तता में अपने प्रोफेशन को भूल जाते हैं।
No comments:
Post a Comment