उसने करीने से अपना सामान बटोरा और सिस्टम से लॉग आउट हो गया। आस पास सब देख रहे थे। बल्कि देखते हुए भी नहीं देख रहे थे।
देख रही थीं आस पास की वो खिड़कियां, दरवाज़े और एसी के बटन वो आज जा रहा था। जा रहा था वहां से जहां उसने अपने करियर के तकरीबन छह साल गुजारे। क्या मालूम था कि एक दिन वही मंदी उसकी नौकरी पर बन पड़ेगी। जिन स्टोरी को अखबार के पन्नों पर बनाया करता था आज वह भी एक सिंगल कॉलम की ख़बर बन जाएगा।
लेकिन अफ्सोस की वह उस कॉलम में भी समा न सका। लोग महज बातें करते रहे कि अच्छा था। मेहनती थी आदि। लेकिन किसी ने भी मदद तो नहीं की। किसी ने भी आश्वासन तक नहीं दिया।
आज अकेला ही उस का़गज पर दस्तख़त कर ऑफिस से बाहर हो गया। शायद अपने सपनों से भी बाहर।
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