छठ के गीत को इस तरह से भी गाने का वक्त आ चुका है। टटकी रचना परोस रहा हूं-
आंगन में पोखर बनई बो,
अनत कहीं पूजन न जइबो।
आदित बाबा घर ही में अर्घ्य चढई बो,
अनत कही पूजन न जइबो।
गंगा जमुन भइले दूर अब कहां अर्घ्य चढई बो,
नदिया पोखर सगर बिलई बो।
का कहीं कहा पूजन के जइबो,
गउंवां देहतावा में जइबो।
उहें अर्घ्य चढ़ई बो,
छतवे पर टबवे में नहई बो।
पारक में उख गड़ई बो,
अनत कहीं भटके न जइबो।
आंगन में पोखर बनई बो,
अनत कहीं पूजन न जइबो।
आदित बाबा घर ही में अर्घ्य चढई बो,
अनत कही पूजन न जइबो।
गंगा जमुन भइले दूर अब कहां अर्घ्य चढई बो,
नदिया पोखर सगर बिलई बो।
का कहीं कहा पूजन के जइबो,
गउंवां देहतावा में जइबो।
उहें अर्घ्य चढ़ई बो,
छतवे पर टबवे में नहई बो।
पारक में उख गड़ई बो,
अनत कहीं भटके न जइबो।
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