पिछले दिनों एक कार्यशाला में मैनेजरनुमा व्यक्ति के लगातार हस्तक्षेप करने की वजह से खिन्नता हुई। जबकि कार्यशाला की पूरी रूपरेखा एक हप्ते पहले ही उन्हें और कॉडिनेटर के साथ साझा किया था। यदि वे उस डॉक्यूमेंट से गुजरे होते तो काफी हद तक उनके हस्तक्षेप कम हो जाते।
कार्यशाला के बीच में जब आप पूरे रफ्तार होते हैं और उस वक्त कोई बार बार यह टोकाटाकी करने लगे कि ऐसे पढ़ाइए, यह भी कराएं, वह भी करा दें आदि तो कोफ्त होती है। उसपर तुर्रा यह कि जिन्हें शिक्षा और भाषा कीह समझ ज़रा सी भी नहीं थी। लेकिन शायद यह भी समझने की आवश्यकता है कि आज शिक्षा इन्हीं लोगों के हाथ में है।
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