कंस्ट्ीच्यूशन क्लब में आरटीई फोरम की ओर आयोजित दो दिवसीय स्कूल प्रबंधन समिति में सदस्यों की राष्टीय सम्मेलन में बहुत मजबूती से इस बात की ओर ध्यान दिया कि कैसे बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराई जाए। देश के विभिन्न राज्यों से आए स्कूल मैनेजमेंट कमिटि के सदस्यों को दो दिवसीय सम्मेलन में सदस्यों ने अपनी बात बेबाकी से रखी। लोगों ने बताया कि किस प्रकार स्कूलों मंे भेाजन बनता है। कैसे बच्चों को पढ़ाया जाता है। किस प्रकार एसएमसी के सदस्यांे की सक्रियता की वजह से उनके गांवों में स्कूलों मंे सुधार हुए।
सब की भाषा, बोली अलग थी। लेकिन सब की चिंता और बेचैनीयत एक ही थी वह था उनके बच्चों को गुणवतापूर्ण शिक्षा मिल सके। तमाम सदस्यों ने एक मांग उठाई कि उनके बच्चों को बिना किसी भेदभाव की शिक्षा मिले।
मुझे इस सम्मेलन में अपनी बात रखने का मौका मिला। मैंने पाठ्युपुस्तकों में किस प्रकार हाशियाकरण को बढ़ावा मिलता रहा है। किस प्रकार हमारी किताबें समाज के साथ ही कक्षा में विभेदीकरण को मजबूती प्रदान की जाती है हमंे इसे समझने की आवश्यकता है।
मुर्दाहिया के लेखक तुलसी राम की की तरह कई बच्चे आज भी देश के विभिन्न कोनों में स्कूली शिक्षा से बाहर हैं। उन्हें शिक्षा की मुख्यधारा से कैसे जोड़ा जाए इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
एसएमसी के सदस्यों की भाषा बोली बेशक समझ नहीं आई किन्तु जो बात मजबूती से रखी गई वह थी वे शिक्षा के प्रति सजग थे। इसी तरह शिक्षा में जब तक आवाज एक स्वर मंे नहीं उठेगी तब तक बदलाव संभव नहीं है।
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