क्या सारे संसद की और जाने वाली सड़क पर जाने के लिए लम्बी पारी खेलते हैं। पत्रकार, युद्याग्पति, मास्टर या ऑफिसर सब के सब संसद तक जाने वाली रोड की तलाश ज़रूर करते हैं। तरुण विजय, मणि शंकर, राम जेठमलानी या और भी कई नाम गिनाये जा सकते हैं। जो अंत में संसद में जा बैठने को बेताब हो रहे थे। लेकिन मजा तो तब आता है जब ये संसद में गैरहाजिर होने लगते हैं। पूरी जीवन भर की थकान, तमन्ना आदि आदि पूरी करने में संसद से ही गायब रहने लगते हैं।
सवाल तो तब पुचा गायेगा जब हाज़िर होंगे। इनको मालुम हो कि १ मिनिट की संसद की कारवाही का खर्च २५ हज़ार रूपये आते हैं। अगर उनकी तू तू मैं मैं के चाकर में संसद थप होता है तो उसकी भरपाई कोण करेगा। जनता के पैसे उडाना रास नहीं आएगा। संसद जा बैठे तो कुछ काम भी कर ले तो बेहतर।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
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