यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Saturday, August 29, 2009
जब कोई बात अटक जाए
कई बार मान लिया जाता है की वो तो येसा ही है येसा ही सोचता है हमें चाहिए यह की ज़रा उसकी जगह रख कर ख़ुद को परख लिया जाए।
Wednesday, August 19, 2009
जस अंत
क्या किताब लिखना महज वजह है या की कुछ और। और यह भी जानना होगा की इसके पीछे क्या मनसा रही। क्या कोई ये बता सकता है के किताब लिखना मेरे पार्टी से निकला गया है या की पार्टी के ऊपर किसी तरह का दबाव कम कर रहा है।
जो भी हो मुझे शब्दों के कीमत चुकानी पड़ी
Tuesday, August 18, 2009
शाह रुख और न लज्जित हों
अभी तब यह मामला थमा नही है। तमाम समाचार पत्र सम्पद्किये तक लिखा सब के स्वर इक से है। लेकिन इक तर्क पड़ व् सुन कर हैरानी होती है, यह पहली बार किसे भारतीये के साथ नही हुवा और फिर लगातार इक के बाद इक घटनायों के बेव्रे दिए गए। फलना फलना के साथ भी हुवा है यह कोई नै बात नही। ज़रा सोचने वाली बात है के जहाँ के प्रेजिडेंट के साथ ज़लालत सहनी पड़ी हो क्या यह भी चलता है वाली धरे पर मान लिया जाए॥
किताब से उठा विवाद
दो घटनाएँ इक साथ लिकना पड़ रहा है। पहली, जसवंत सिंह की किताब से उठी विवाद की जिन्ना साहब विभाजन के हीरो नही हैं। इस किताब में बड़ी ही शिदत्त से बयां किया गया है की दरअसल दोनों देशों से विभाजन के लिए जिन्ना साहब दोषी मन जाता है जबकि नेहरू और गाँधी भी उतने ही दोषी हैं जितने की जिन्ना। लेकिन जिन्ना को इसके लिए भारतीये राजनीती में खलनायक साबित किया गया। यह कांग्रेस की चल थी जो लंबे समाये तब इस तथ्य को दबा कर रखा।
जसवंत सिंह बीजेपी के नेता तो रहे ही है साथ ही विदेश मंत्री भी रह चुके हैं। ध्यान हो की पार्टी ने कुछ नेतावों को भर का रास्ता दिका चुकी है । यैसे में जसवंत सिंह के कलम से जन्मी यह किताब इक अलग विवाद को जन्म दे रही है। जन्म दे विवाद से डरता कोण है लेकिन क्या देश में पहले से समस्या कम है जो इक न्यू किस्म के विवाद को हवा दिया जा रहा है। क्या जसवंत सिंह हिस्टोरियन हैं जो तथ्य को इक नै रौशनी में देखने की कोशिश कर रहे हैं या यह उनकी कोई राजनितिक चल है। यह जानना ज़रूरी होगा।
Tuesday, August 11, 2009
कुछ जगह याद दिलाती हैं
Monday, August 3, 2009
हौसला तोड़ने वाले
नकारात्मक सोच अपना और बनने लगता है जिसे हम या की आप आसानी से दूर नही कर सकते....
शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...
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प्राथमिक स्तर पर जिन चुनौतियों से शिक्षक दो चार होते हैं वे न केवल भाषायी छटाओं, बरतने और व्याकरणिक कोटियों की होती हैं बल्कि भाषा को ब...
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कादंबनी के अक्टूबर 2014 के अंक में समीक्षा पढ़ सकते हैं कौशलेंद्र प्रपन्न ‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘कविता की संवेदना’, ‘आलोचना का स्व...
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...