मस्जिद के पिछवाडे आकर॥
ईटों की दीवार से लगकर,
पथराए कानो पे,
अपने होठ लगाकर,
इक बूढे अल्लाह का मातम करती हैं,
जो अपने आदम की सारी नस्लें उनकी कोख में रखकर,
गुलजार की लाइन बात रहा हूँ इन में ज़ज्बात सोती है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...
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