मन्दिर कब कहाँ कैसे तैयार होजये आप तै नही कर सकते। उसपर तर्क यह देना की हिंदू हो कर येसी बात करते हो जब मस्जिद बन सकता है, गुरूद्वारे तैयार हो सकते हैं तो मन्दिर बनने में रोड़ा कैसे कोई अटका सकता। दरसल हमारे देश में धर्म के नाम पर संपत्ति, पैसे यूँ ही बर्बाद किया जाता है।
अगर मंदिरों में चादावे पर नज़र डालें तो आखें फटी रह जाएँगी। तिरुपति मन्दिर में सालाना कोरोड़ से भी जयादा कमी होती है। इस साल जनवरी में साईं बाबा में मन्दिर में इतना चदवा आया की वह तिरुपति को पीछे धकेल दिया जाएगा
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Thursday, February 26, 2009
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
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