कई दिन से सोच रहा हूँ पिता को लिखूं
कैसा हूँ
कितना याद आते हैं पिता
मौन शांत
कुछ गढ़ते से
या चुप चाप नदी के किनारे सुबह
टहलते हुए
पर क्या करूँ क्या लिखूं
हर शाम जब थक जाता हूँ तब याद आते हैं पिता
लिखने को ख़त बैठता हूँ
लेकर कलम
पर हाथ नही चलते
झूठ लिखते कापने लगते हैं
के मैं ठीक हूँ
वो पढ़ कर उदास हो जायेंगे
सो छुपा लेता हूँ
खुश हूँ
आप पिता याद आते हैं माँ पास में बैठी
कहती
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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1 comment:
bhut bhavuk kavita. ati uttam. likhate rhe.
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