कई बार सोच कर फिर चुप बैठ जाता हूँ कहाँ तलाशूंगा शहर का शांत कोना
हर तरफ़ भीड़ और शोर पसरा है
लगता है तुम्हारे शहर में शोर है या तुम शोर में रहते हो कई बार सोच कर फिर चुप रह जाता हूँ
कई बार शहर में पसरा शोर डराता रहता है
मगर कुछ तो है
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Wednesday, July 2, 2008
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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