कौशलेंद्र प्रपन्न
स्वच्छता की जिम्मेदारी कायदे से सरकार से ज़्यादा हम नागरिकों की बनती है। सरकार कायदे कानून बना सकती है। हमें बता सकती है कि इस योजना में आपको कैसे जुड़ना है। आदि। लेकिन मूलतः स्वच्छता जैसे अभियानों को सफल बनाने में हम नागर समाज को आगे आना होगा। यूं तो वर्तमान सरकार पिछले चार वर्षों से स्वच्छता को अपना आंदोलन के तौर पर शुरू किया है। लेकिन देखा तो इससे उलट जाता है। हम एक ओर स्वच्छता अभियान में नारे लगा रहे होते हैं। वहीं दूसरी ओर गाड़ी में बैठते ही अपना खाया हुआ रैपर खिड़की खोल कर सड़क पर फेंक देते हैं। गोया सड़क न हुई चलता फिरता कूड़ादान हो।
किसे नहीं मालूम कि स्वच्छता जैसे काम को बेशक सरकार हमें जागृत करे किन्तु यह काम तो हमारा है। हमें अपनी आस-पास को साफ रखने में अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। कोई बाहर का आकर एक या दो दिन तो कैम्पेन चला सकता है। लेकिन नियमित तौर पर हमें ही रख रखाव रखने होते हैं।
एक और दिलचस्प है कि एक ओर हम स्वच्छता का अभियान कर रहे होते हैं वहीं घर और घर के बाहर सारे कचरा उडे़ल रहे होते हैं। किसे नहीं पता कि तमाम एमसीडी अपने अपने क्षेत्र में मुफ्त में गाड़ियां चलाती हैं जो सुबह सुबह घर घर जाकर कचरे इकत्र करती हैं। लेकिन उसके बावजूद हम शाम में पार्क के आस-पास भी घर का कचरा डालने में गुरेज नहीं करते।
हाल ही में प्रधानमंत्री जी ने विभिन्न कॉर्पोरेट सेक्टर के सीएसआर को पत्र लिखा और उनसे इस अभियान में मदद मांगी। उन्होंने पत्र में लिखा है कि नागर समाज को स्वच्छ बनाने में कंपनियां आगे आएं। अब कौन कंपनी का मालिक होगा जो इस अनुरोध को मना कर सकता है। हर कोई प्रधानमंत्री जी के पत्र पर संज्ञान लेते हुए अपनी अपनी कंपनियों में अभियान में कैसे जुड़ें व कर सकते हैं इसकी एक रोड़ मैप प्रस्तुत करेंगे।
कितना अच्छा हो कि हम स्वयं बिना किसी और के जगाए स्वच्छता अभियान में अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करें। आख़िरकार यह किसी और के लिए नहीं बल्कि हमारी ही जिं़दगी और स्वच्छ वातावरण के लिए है।
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