कौशलेंद्र प्रपन्न
मैनेजमेंट में प्रोजेक्ट को चलाने के लिए कई प्रोजेक्ट मैनेजर की ज़रूरत पड़ती है। कोई भी प्रोजेक्ट हो चाहे वह सरकारी हो या फिर गैर सरकारी। प्रोजेक्ट मैनेजर के चुनाव में यदि प्रोग्राम मैनेजर चैकन्ना न हो या फिर यदि पूर्वग्रह में मैनेजर नियुक्त करता है तो उसका असर प्रोजेक्ट के पूरे होने, सफल और विफल होने में बड़ी भूमिका निभाता है। अपनी ही टीम में से यदि किसी को चुनना होता है तब कई सावधानियां रखनी पड़ती है। क्या जिसे हम नई भूमिका के लिए चुन रहे हैं वह कैपेबल है? क्या उसके अंदर क्षमता और दक्षता है? क्या उसकी कार्यशैली टीम को लीड करने, टीम को गाइड करने आदि की रणनीति बनाने और विज़न बनाने आदि बनाने की क्षमता है आदि।
हमारे प्रोजेक्ट इसलिए भी समय पर पूरे नहीं होते क्योंकि प्रोजेक्ट मैनेजर सही तरीके से रणनीति नहीं बना पाता। समय पर सही व्यक्ति को कम्युनिकेट नहीं कर पाता। प्रोजेक्ट के विज़न और मिशन को हर टीम तक संप्रेषित नहीं कर पाता। यदि टीम में गोल ही स्पष्ट नहीं है तो टीम आख़िर किस दिशा में बढ़गी। दिशा और लक्ष्य की अस्पष्टता की स्थिति में समय, पैसे, मैनपावर आदि लगते हैं।
हालांकि हर व्यक्ति अपनी दिनचर्या को मैनेज तो करता ही है। लेकिन प्रोजेक्ट को मैनेज करना थोड़ा अलग है। वह इस मायने में कि जब आप अपनी ज़िंदगी मैनेज करते हैं तो ज़्यादा लोग नहीं होते। वहीं प्रोजेक्ट में चार से अधिक भी व्यक्ति शामिल होते हैं। जब व्यक्ति हैं तो उनके साथ कुछ व्यवहार, कुछ संवेग, कुछ इमोशन भी साथ होती हैं। इमोशन को मैनेज करना भी एक कौशल है।
मैनेजर को अपनी और अपने अंदर काम करने वाले कर्मियों के इमोशन को भी बैलेंस करना होता है। काम का दबाव तो होता है। इससे किसी को भी गुरेज़ नहीं हो सकता। लेकिन काम के दबाव में आप किसी और के इमोशन और काम करने की टेम्पो को कुचल नहीं सकते। शायद यहां मैनेजर ग़लती कर बैठता और अपना आपा खो बैठता है। गुस्सा या खीझ किसी और की थी लेकिन वह अपने से नीचे व्यक्ति पर उतार देता है। ऐसे में वह टीम के अन्य सदस्यों के बीच अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान खो देता है। मैनेजर का रोल दूधारी तलवार पर चलने जैसा है। एक ओर अपने से उच्च अधिकारियों क निर्दशों, इगो, दबाव को सहता है वहीं अपने अंदर काम करने वाले व्यक्तियों की अपेक्षाओं और इगो को भी संतुलित करना पड़ता है।
यदि एक ग़लत मैनेजर का चुनाव करते हैं तो कुछ समय के लिए ही सही हमारा प्रोजेक्ट व प्रोग्राम पर उसका असर तो पड़ता ही है।
कुछ बेहतर मैनेजर की सूत्र-
सही समय पर, सही तरीके से, सही व्यक्ति तक संवाद का सक्रिय एवं सकारात्मक और निरंतर संप्रेषण नितांत ज़रूरी होता है।
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