कौशलेंद्र प्रपन्न
शिक्षकों पर कई तरह के तोहमत लगाए जाते रहे हैं। शिक्षक पढ़ाते नहीं। शिक्षकों में पढ़ाने की चाह नहीं रही। इस प्रोफेशन में आराम करने और जीवन से निराश हो चुके लोग होते हैं आदि। यदि यह तर्क हैतो पूर्वग्रह के करीब है।दरअसल शिक्षक पढ़ाते हैं। पढ़ाने की छटपटाहट भी होती है। लेकिन बीच कक्षा में उन्हें आंकड़ों के पेट भरने का काम दे दिया जाता है।शिक्षक पढ़ाना छोड़कर वर्दी,वजिफे आदि के पैसे बांटने, आधार नंबर को बैंक में लिंक कराने में जुट जाता है।उससे कोई नहीं पूछता पढ़ाई के दौरान आई अडचनों को कैसे दूर करोगे।
एक शिक्षक ने खुले दिल से कबूल किया कि एक बार यही कोई दस साल पहले जब वो नई नई नौकरी में आई थीं उन्होंने एक बच्चे को इस लिया पीटा था,बल्कि रोका भी करतीं करती थींक्योंकि वह दीवारां और फर्शपर चित्रकारी किया करता।
घटना घटे लंबा समय हुआ एक दिन एक वयस्क उनके सामने खडा हो गया और कहा, पहचाना!!! मैं कृष्णा। शिक्षिका को न नाम याद थे और न उसका चेहरा। लेकिन जब उसने घटना बयां किया कि वही बच्चा हूं जिसे आप रोज पीटा और डांटा करती थीं। कृष्णा। अब मेरी पेंटिंग की दुकान है। चित्र बनाता हूं। पोस्टर डिजाइन करता हैं। और स्कूलों के बैनर आदि बनाता हूं।
शिक्षिका ने बताया उस दिन मेरे पास कहने को कोई शब्द नहीं था। मैं अपनी ही नजरों में डूबती जा रही थी। उन्होंने कहा उस दिन एहसास हुआ कि मैं कितनी गलत थी।
इस तरह के शिक्षक एक नहीं बल्कि कई हैं जिन्हें अपने शिक्षण के दौरान हुए अनुभवों से ऐसी सीख भी मिली जिन्हें वो कभी भूल नहीं पाते।
1 comment:
सही कहा आपने .... ।
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