शहर के भूगोल में पुस्तकालय
जब शहर के भूगोल से पुस्तकालय खत्म होने लगें और मॉल्स की भरमार होने लगे तो समझिए बड़ी घटना है। किसी भी शहर को ख़ास वहां की प्राचीरें,संस्थाएं,तहजीब,भाषा-बोली,खानपान आदि बनाया करती हैं।
दिल्ली शहर में बसी एक पुरानी बहुत पुरानी लाइब्रेरी हरदयाल पब्लिक लाइब्रेरी अपनी अंतिम सांसें ले रही है। यह लाइब्रेरी 1862 में शुरू हुई। आज यहां उपलब्ध 8,000 से ज्यादा दुर्लभ पुस्तकें, पांडुलिपियां वास्तव में ख्.ाक में मिल रही हैं। इन्हें सुरक्षित करने, संरक्षित करने की ओर अब सरकार की नींद खुली है। कहते हैं इस पुस्तकालय में औरंगजेब की हस्त लिखित पुस्तक तो हैं ही साथ ही कई ऐसी दुर्लभ पुस्तकें जो अरबी फारसी की हैं यहां हैं जिन्हें बचाए जाने की आवश्यकता है।
शहर में इल्म की फसल तभी लहलहा सकती है जब वहां के लोग पुस्तकालयों को बचाने, पनपनें में अपना योगदान दें। आजादी के सत्तर साल बाद भी हमने एक मुकम्मल पुस्तकालीय समाज को रचने में विफल रहे हैं। मॉल्स, फ्लाई ओवर, फास्ट रेल तो चला दीं लेकिन अपने शहर में एक अदद लाइब्रेरी के लिए बेचैन नहीं होते....!!!
जब शहर के भूगोल से पुस्तकालय खत्म होने लगें और मॉल्स की भरमार होने लगे तो समझिए बड़ी घटना है। किसी भी शहर को ख़ास वहां की प्राचीरें,संस्थाएं,तहजीब,भाषा-बोली,खानपान आदि बनाया करती हैं।
दिल्ली शहर में बसी एक पुरानी बहुत पुरानी लाइब्रेरी हरदयाल पब्लिक लाइब्रेरी अपनी अंतिम सांसें ले रही है। यह लाइब्रेरी 1862 में शुरू हुई। आज यहां उपलब्ध 8,000 से ज्यादा दुर्लभ पुस्तकें, पांडुलिपियां वास्तव में ख्.ाक में मिल रही हैं। इन्हें सुरक्षित करने, संरक्षित करने की ओर अब सरकार की नींद खुली है। कहते हैं इस पुस्तकालय में औरंगजेब की हस्त लिखित पुस्तक तो हैं ही साथ ही कई ऐसी दुर्लभ पुस्तकें जो अरबी फारसी की हैं यहां हैं जिन्हें बचाए जाने की आवश्यकता है।
शहर में इल्म की फसल तभी लहलहा सकती है जब वहां के लोग पुस्तकालयों को बचाने, पनपनें में अपना योगदान दें। आजादी के सत्तर साल बाद भी हमने एक मुकम्मल पुस्तकालीय समाज को रचने में विफल रहे हैं। मॉल्स, फ्लाई ओवर, फास्ट रेल तो चला दीं लेकिन अपने शहर में एक अदद लाइब्रेरी के लिए बेचैन नहीं होते....!!!
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