दीपावली की शुभकामनाएं। परिवार में समृद्धि और खुशियां बनी रहे इसी कामना के साथ एक छोटी सी अभिव्यक्ति प्रस्तुत है।
इस बरस
देवता घर नहीं खुला,
नहीं जोरा दीया,
जालों में लिपटे मिले,
कृष्ण, राम और तमाम देवता।
सुबह सुबह नहाना भी भूल गए बाल गोपाल
धूल में सने रहे सब के सब,
तुलसी के चारों ओर,
घासों का भरमार।
बेटे की आस में
दुआर रहा उदास,
दीवार में अटकी तस्वीर में हंसता रहा बेटा,
सियालदह से उतर गया राहगीर,
नहीं पहंुचा घर।
चीनी की जगह डालने लगी है नमक खीर में
मतारी की लोर भरी आंख,
तकती रहती,
गली से मुड़ते हर रिक्शे से उतरने वाले,
कोई उतरे इसके दुआर।
इस बरस देवता घर उदास
जालों में लिपटे,
करते रहे इंतज़ार,
रोशनी की राह तकते रहे देवता।
इस बरस
देवता घर नहीं खुला,
नहीं जोरा दीया,
जालों में लिपटे मिले,
कृष्ण, राम और तमाम देवता।
सुबह सुबह नहाना भी भूल गए बाल गोपाल
धूल में सने रहे सब के सब,
तुलसी के चारों ओर,
घासों का भरमार।
बेटे की आस में
दुआर रहा उदास,
दीवार में अटकी तस्वीर में हंसता रहा बेटा,
सियालदह से उतर गया राहगीर,
नहीं पहंुचा घर।
चीनी की जगह डालने लगी है नमक खीर में
मतारी की लोर भरी आंख,
तकती रहती,
गली से मुड़ते हर रिक्शे से उतरने वाले,
कोई उतरे इसके दुआर।
इस बरस देवता घर उदास
जालों में लिपटे,
करते रहे इंतज़ार,
रोशनी की राह तकते रहे देवता।
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