कथाकार ही नहीं बल्कि एक सहज और सरल व्यक्ति भी हैं। उनसे मिलकर एक पल के लिए भी नहीं लगा कि हम महज कथाकार से मिल रहे हैं, बल्कि घर के सबसे बड़े सदस्य से मिलना हो रहा है।
सवाल था क्या कहानी और उपन्यासकार के पात्र उसके हाथ की कठपुतली होते हैं?
जी बिल्कुल। कथाकार के पात्र कथाकार के हाथों नाचने वाले होते हैं। मेरा तो मानना है कि जो भी पात्र कथा में आते हैं वो कथाकार के आस-पास के लोगों के प्रतिनिधित्व करते हैं। कथाकार जैसे चाहता है वैसे ही उसके पात्र चलते हैं।
दूसरा सवाल था- क्या कहानी के पात्र का जीवन-दृष्टि कथाकार की ही दृष्टि होती है?
डोभाल जी ने कहा कि हां कथाकार का प्रतिबिंब होता है उसके पात्र। कथाकार जिस तरह का जीवन जीता है उसकी छवियां पात्रों में कहीं न कहीं दिखाई देती हैं।
छंद में जिसने आपने आप को साधा है वहीं छंद मुक्त कविता लिख सकता है। इसमें आप क्या कहते हैं?
बिल्कुल सही बात है। मैंने भी शुरू में छंदबद्ध कविताएं लिखी हैं। बाद मैंने कविता का क्षेत्र छोड़कर कहानी में आ गया। क्योंकि कविताएं वास्तव में पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए पूरे नहीं होते। इसलिए मैंने कविता से नाता तोड़कर कहानी दामन थामा।
प्रस्तुति
कौशलेंद्र प्रपन्न
रविवार दिसम्बर 22, 2013
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